Friday, December 26, 2014

एक म्यूजिक थेरेपी - संगीत का स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव

क्या आप जानते है कि जिस प्रकार "मौसम" सम्पूर्ण जगत में प्राणियों के स्वभाव,स्वास्थय  एवं मनोदशा पर अपना असर छोड़ता है, ठीक उसी प्रकार भारतीय शास्त्रीय संगीत भी विभिन्न ऋतुओं में मानव के पूर्ण व्यवहार, स्वास्थय और मनोस्थिति को बदलने की क्षमता रखता है। बसंत ऋतु में राग बसंत, राग बहार और वर्षा ऋतु में मिँया मल्हार, गौड़ मल्हार तथा सुर मल्हार राग गाये  जाते है, जिसके गाने या सुनने से हमें उस मौसमी ऋतु का अहसास होने लगता है । ऐसे ही राग दीपक से संगीत सम्राट तानसेन ने वातावरण में गर्मी उत्पन्न कर दी थी । अतः पुरातन काल से ही भारत में शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों के सुरों से उत्पन्न गीत संगीत मानव में संवेग और जीवन में उत्साह उमंग व ऊर्जा का स्रोत निर्मित करने का दम रखता है ।  अतः हम कह सकते है संगीत का मानव जीवन में गहरा और सकारात्मक प्रभाव होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के इन्हीं प्रभावों के कारण आज चिकित्सा के क्षेत्र में विभिन्न रोगों के उपचार में संगीत का योगदान भी लिया जा रहा है। इस महत्वपूर्ण म्यूज़िक थेरेपी और इससे होने वाले लाभों को बताते हुए मैंने, मेरी पत्नी और दो बच्चों के साथ कई जगहों पर संगीत कार्यक्रम के माध्यम से प्रदर्शित किया है जिसे लोगों ने काफी ज्यादा सराहा और इससे लोगों को लाभ भी मिला है ।  
 इंसान का संगीत के साथ गहरा रिश्ता सदियों से चला आ रहा है और संगीत का सितारों के साथ। यही कारण है कि संगीत सुनकर या गाकर कभी तो हम खुश तो कभी उदास हो जाते है। मनुष्य के शरीर पर ग्रह-नक्षत्रो का प्रभाव देखा जाता है, इस कारण शरीर और ग्रह-नक्षत्रो के परस्पर संबंध से प्रभावित होकर मानव कई रोगों से पीड़ित होता है। अतः इस स्थिति में जब ग्रह-नक्षत्र से सबंधित संगीत को सुना या गया जाए तो उस रोग के उपचार में मदद मिलती है। आज चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी अनेक रोगों के उपचार में संगीत की उपयोगिता को स्वीकार किया गया है और इसे चिकित्सा में अपनाने पर जोर दिया है। 
आज भागदौड़ से भरी जिंदगी के दौर में प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी रोग का शिकार है। ऐसे में आपके लिए सदैव निरोगी रहने के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत के गुनी संगीत विशेषज्ञों द्वारा किये गए शोध के अनुसार कुछ गाये जाने वाले भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों की जानकारी के साथ उन रागो पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी से संबंधित नए-पुराने गानों, भजनों को उदाहरणगानों को हम आप तक पहुंचा रहे है। यदि इन गानों को दिन भर में मात्र २०-२५ मिनिट सुनने या गाने तब अनेक रोगों से ग्रस्त रोगी को काफ़ी राहत मिलती है। कुछ चुनिंदा भारतीय पुरानी फिल्मों के रागों पर आधारित गानों, भजनों आदि के कैसेट्स और सीडी बाजार में आसानी से मिल जाते है ,अतः यदि उन रागों पर आधारित गानों की पूरी कैसेट्स को तो सुने तो ज्यादातर रोगों का इलाज हो सकता है। 
मनो रोग  - डिप्रेशन, उदासीनता, जीवन के प्रति नीरसता आदि मनोरोगों में राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना अत्यंत लाभदायी है। इन रोगों से संबंधित कुछ गीत है, जैसे 
-तुम तो प्यार हो सजना,मुझे तुमसे प्यारा कोई नहीं (सेहरा)
-सखी री मेरा मन उलझे, तन डोले (चित्रलेखा)
-तेरे सुर और मेरे गीत (गूंज उठी शहनाई )
-सखी री पी का नाम, नाम ना पूछो (सती सावित्री)
-मतवारी नार ठुमक-ठुमक चली जाये(आम्र पाली)
रक्त चाप-   उच्च रक्तचाप में धीमी गति और निम्न रक्त चाप में तीव्र गति के गीत सुनकर रक्तचाप को सामान्य किया जा सकता है। उच्च रक्त चाप में राग भोपाली के विलम्बित गाने सुने और गाये, जैसे 
-चल उड़ जा रे पंछी (भाभी) तथा ज्योति कलश छलके( भाभी की चूड़िया )
-चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो(पाकीज़ा)
-ओम नमः शिवाय (भैरवी) और नील गगन के तले (हमराज)
तथा निम्न रक्तचाप में तीव्र गती के गाने सुने और गाये जैसे;
-ओ नींद ना मुझको आये(पोस्ट बॉक्स न. 909)
-बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ( जिस देश में गंगा बहती है)
-पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ बालमा  (सेहरा)
ह्रदय रोग-  इस रोग के उपचार में राग दरबारी तथा राग सारंग के शास्त्रीय और इस पर आधारित फ़िल्मी गाने अधिक लाभकारी होते है। जैसे;
-झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया(मेरे हुजूर)
-ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले (बैजू बावरा)
-तोरा मन दर्पण कहलाये (काजल) 
-राधिके तूने बँसुरी चुराई( बेटी-बेटे) और -मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये(मुगले आजम) 
अस्थमा-  अस्थमा रोग में स्वांस की समस्या होती है जिसमें यदि भक्ति पर आधारित गीत सुने तो उपयोगी होगा । राग मालकौंस और राग ललित सुनना और गाना बहुत लाभदायी होता है। कुछ गीत है जैसे; 
-मन तरपत हरी दर्शन को आज(बैजू बावरा )
-तू है मेरा परम देवता इन चरणो की दासी मैं (कल्पना) 
-तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ (नवरंग)
-रैना बीती जाए श्याम ना आये (अमर प्रेम) और आधा है चन्द्रमा रात आधी (नवरंग)
अनिद्रा- मुझे नींद ना आये मुझे चैन ना आये, ऐसी स्थिति में जब अनिद्रा रोग से आदमी परेशान हो तो उसे राग भैरवी या सोहनी राग पर आधारित गाना या सुनना चाहिए जिससे उसे अनिद्रा से राहत मिलेगी। कुछ गाने उदाहरण के लिए जैसे ;
-दिल का खिलौना हाय टूट गया (गूंज उठी शहनाई) 
-छम छम बाजे रे पायलिया (घूँघट)
-झूमती चली हवा याद आ गया कोई (संगीत सम्राट तानसेन) 
-कुहू-कुहू बोले कोयलिया (स्वर्ण सुंदरी) आदि 
सिरदर्द - ज्यादा काम की थकान या मौसम में बदलाव के कारण यदि सर में दर्द हो रहा हो तो इस समय शांत होकर राग भैरव या राग देस सुने और गाये तब काफी आराम मिलेगा अनावश्यक दवाई खाने की आवश्यकता नहीं होगी । गाने इस प्रकार है;
-मोहे भूल गए साँवरिया (बैजू बावरा)
-राम तेरी गंगा मैली हो गयी (राम तेरी गंगा मैली हो गयी)
-पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई( मेरी सूरत तेरी आँखे)
-जागो मोहन प्यारे, नवयुग का सन्देश है जागो(जागते रहो)
-सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए) आदि
याददाश्त- कभी कभी व्यक्ति की मेमोरी या याददाश्त कमजोर हो जाती है, ऐसा होने पर राग शिवरंजनी पर आधारित गाने सुने और गाये, आपकी याददाश्त बढ़ेगी, इस राग के कुछ गाने इस प्रकार है, 
-मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा(महबूबा)
-बहरों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है( सूरज)
-जाने कहाँ गए वो दिन कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछायेंगे (मेरा नाम जोकर) 
-लागे ना मोरा जिया सजना (घूँघट)
-खबर मोरी ना लीनी रे , बहुत दिन बीते(संत ज्ञानेश्वर)
-ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम दो जिस्म मगर एक जान है हम(संगम) आदि 
निस्तेज या रूखापन - शरीर में कभी कभी खून की कमी से या हवा में आद्रता की कमी या ड्राइनेस से त्वचा का रूखापन बढ़ जाता है जिससे हम चिढचिढे हो जाते है और शरीर निस्तेज लगता है । ऐसे में यदि राग पीलू पर आधारित गानों को ज्यादा गाये या सुने तब इस रोग से छुटकारा मिलता है। गाने कुछ इस प्रकार है;
-मोरे सैया जी उतरेंगे पार हो नदिया धीरे बहो(उड़न खटोला)
-चन्दन का पलना रेशम की डोरी, झूला झूले (शबाब)
-उस पार साजन , इस पार धारे (चोरी चोरी)
-झूले में पवन की आई बहार प्यार कर ले (बैजू बावरा)
कमजोरी या शक्तिहीनता - खून की कमी या किसी बीमारी के कारण कमजोरी महसूस हो सकती है । इस समय आप यदि राग जय-जयवंती पर आधारित गाने सुने तो बेहतर होगा। गाने कुछ इस प्रकार है;
-मनमोहमा बड़े झूठे, हार के भी हार ना माने (सीमा)
-मोहब्बत की राहों में चलना संभल के (उड़न खटोला)
-तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना हो सकेगा (बीस साल बाद)
-साज हो तुम आवाज हूँ मै (साज और आवाज)
-जिंदगी आज मेरे नाम पे शरमाई(दिलदिया दर्द लिया)
एसिडिटी असामान्य दिनचर्या या काम की भाग-दौड़ में खाने आदि में गड़बड़ी से आज कल यह बीमारी ज्यादातर लोगों में पाई जाती है। इस शिकायत से निजात पाने के लिए निम्न लिखित गाने गाये या सुने । जैसे ;
-हमने तुझसे प्यार किया है जितना, कौन करेगा उतना (दूल्हा-दुल्हन)
-तुम कमसिन हो नादाँ हो नाजुक हो भोली हो ( आई मिलन की बेला)
-तकदीर का फ़साना जाकर किसे सुनाये( सेहरा)
-आयो कहाँ से घनश्याम (बुढ्ढा मिल गया) और रहते थे कभी जिनके दिल में (ममता) आदि

   अतः यह सही है कि पृथ्वी पर विराजमान सुन्दर प्रकृति और उसके बारहमासी मौसम ने मनुष्य को रागों की उत्पत्ति के लिए प्रेरित किया और आज हम सभी संगीत के माध्यम से प्रत्येक मौसम का आनंद गीतों द्वारा उठाते है, जो हमें हर मौसम में कई शारीरिक रोगों से लाभान्वित भी कर रहे है। इसलिए आप सभी प्रतिदिन २०-२५ मिनिट अच्छा संगीत सुने  या गाये या किसी भी तरह से इससे जुड़े रहे, जो हमें अनेक रोगों से चुस्त-दुरुस्त, ऊर्जान्वित और निरोगी बनाये रखने में सदा सहायक होगा ।  
   
    

      

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