फिल्मों से दूषित होती भारतीय संस्कृति
आज पुनः देश एक और बलात्कार के मामले से निश्चित दुखी है, उबर टैक्सी में हुए निर्दोष लड़की के बलात्कार के लिए कौन दोषी है इस पर दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों, अखबारों आदि में जोरदार विरोध के साथ चर्चा है। मुझे लगता है,भारतीय संस्कृति के बिगड़ते स्वरुप में आज की फिल्मो ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है।
निर्भया कांड के समय भी मुझे इस बीमारी की जड़ केवल भारतीय फ़िल्में ही लगी थी और आज भी वही कारण है । इस सब अपराधों के लिए मात्र सरकारों या पुलिस पर दोष लगाना जायज नहीं है। हमारे देश का
सरकारी तंत्र और उसकी कड़ी कानूनी व्यवस्था ऐसी बनाई गयी है कि समाज और देश में एक सदभावपूर्ण और शांति का वातावरण बने जो देश के सर्व विकास में उपयोगी हो । सरकार और उसका तंत्र अपना कार्य भलीभांति करता है किन्तु जब लोग ही अशिक्षित हो और जहाँ शिष्टाचार तथा नैतिक मूल्यों की कमी हो वहां कोई भी सरकारी तंत्र हो कभी अच्छा वातावरण निर्मित नहीं हो सकता । लोग क़ानून का पालन नहीं करते कारण उन्हें उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान नहीं है ।
इस कुरीति को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है हमारा मिडिया, सच्चाई और वास्तविकता से दूर फ़िल्में और प्रत्येक चैनल पर दिखाए जा रहे कंडोम, बॉडी स्प्रे या अन्य कपड़ो से लेकर कार तक के विज्ञापनों में अश्लील दृश्य जो सेक्स को ज्यादा दिखाकर अपने सामान को बेचना चाहते है । इससे हमारे समाज के सभी आयु के नर नारी बुरी तरह से प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार हो रहे है । आज इस दौड़ती भागती जिंदगी में लोग स्वार्थी होकर अपना कार्य करे है, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं, कोई मानवता नहीं रह गयी है और जो कभी कभी दिखती है वह भी दिखावा ही होती है ।
आज पुनः देश एक और बलात्कार के मामले से निश्चित दुखी है, उबर टैक्सी में हुए निर्दोष लड़की के बलात्कार के लिए कौन दोषी है इस पर दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों, अखबारों आदि में जोरदार विरोध के साथ चर्चा है। मुझे लगता है,भारतीय संस्कृति के बिगड़ते स्वरुप में आज की फिल्मो ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है।
निर्भया कांड के समय भी मुझे इस बीमारी की जड़ केवल भारतीय फ़िल्में ही लगी थी और आज भी वही कारण है । इस सब अपराधों के लिए मात्र सरकारों या पुलिस पर दोष लगाना जायज नहीं है। हमारे देश का
सरकारी तंत्र और उसकी कड़ी कानूनी व्यवस्था ऐसी बनाई गयी है कि समाज और देश में एक सदभावपूर्ण और शांति का वातावरण बने जो देश के सर्व विकास में उपयोगी हो । सरकार और उसका तंत्र अपना कार्य भलीभांति करता है किन्तु जब लोग ही अशिक्षित हो और जहाँ शिष्टाचार तथा नैतिक मूल्यों की कमी हो वहां कोई भी सरकारी तंत्र हो कभी अच्छा वातावरण निर्मित नहीं हो सकता । लोग क़ानून का पालन नहीं करते कारण उन्हें उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान नहीं है ।
इस कुरीति को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है हमारा मिडिया, सच्चाई और वास्तविकता से दूर फ़िल्में और प्रत्येक चैनल पर दिखाए जा रहे कंडोम, बॉडी स्प्रे या अन्य कपड़ो से लेकर कार तक के विज्ञापनों में अश्लील दृश्य जो सेक्स को ज्यादा दिखाकर अपने सामान को बेचना चाहते है । इससे हमारे समाज के सभी आयु के नर नारी बुरी तरह से प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार हो रहे है । आज इस दौड़ती भागती जिंदगी में लोग स्वार्थी होकर अपना कार्य करे है, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं, कोई मानवता नहीं रह गयी है और जो कभी कभी दिखती है वह भी दिखावा ही होती है ।
फिल्मो में दिखाए जा रहे सेक्स अपील के दृश्यों ,उनके फिल्मांकन ,संगीत,तथा निर्देशन ने आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्कृति के स्वरुप को बदल कर रख दिया है। जनता को सेक्स के नाम पर अपनी फिल्मो को दिखाकर एवं पश्चिमी सभ्यता को अपनाने कि बात कह कर मात्र पैसे का खेल खेला जा रहा है। सामाजिक जीवन से जुडी अच्छी कहानियों से दूर होकर तथा पैसा बनाने की लालसा ने फिल्मों से जुड़े स्वार्थी लोगों ने भारत देश के समाज की केवल बुराईयों को ज्यादा दिखाकर तथा अश्लीलता वाले दृश्यों के बल पर शिक्षित व अशिक्षित लोगों में इन बुराइयों की प्रवत्ती को बढ़ाने में मदद की है जिससे लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहें है। इसका कारण है कि आज आये दिन बलात्कार, हत्या, मारपीट, चोरी डकैती जैसी घटनाएं हो रही है । निर्भया के बाद एक के बाद एक कई बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे है । इस प्रकार के अपराधों को दूर करने या इसमें कमी लाने के लिए कोई भी फिल्म का निर्माण नहीं किया गया है ताकि लोग कुछ उसे देखकर मानसिक बीमारी से निजात पा सके।
आज आम आदमी हमारे देश की अन्य बड़ी समस्याओं पर नजर नहीं रखता वह काम केवल सरकार का है मानकर चलता है । आतंकवादी हमलों से कोई परेशान नहीं होता उसमे शहीद हो रहे सुरक्षा कर्मियों के लिए किसी को कोई भी दुख नहीं होता। कारण देश भक्ति में कमी आना है सभी अपने आप को ज्यादा ही आज़ाद महसूस कर रहा है।
हमारे देश की संस्कृति में महिलाओं के लिए विशेष जरूरत होती है की वे अपनी मर्यादा और सम्मान के लिए सदैव सतर्क हो । उनको पूर्ण आज़ादी हो किन्तु इसका मतलबी यह नहीं कि वे मर्दों जैसे रात में भी निडर होकर रहे। हमारे देश की मानसिकता में अभी इतना ज्यादा बदलाव नहीं आया है कि महिलाएं स्वतंत्र होकर कुछ भी करें । आवश्यकता है कि अपने आप को सुरक्षित कैसे रखकर काम करें उसके लिए जरूरी है कि भारतीय समाज की वेशभूषा का उपयोग हो, फिल्मों में दिखाए जा रही अवास्तविक बातों को ना अपनाये। आदमी हो या महिला सभी की सुरक्षा के लिए कई क़ानून है किंतु हमारा भी दायित्व है की हम कैसे इस समाज में अपने ज्ञान,संस्कार, शिक्षा, शिष्टाचार व नैतिक मूल्यों का परिचय दे और उसके प्रति खरे उतरे । शायद तभी यह संभव होगा कि हमारी देश की संस्कृति बच पाये।
आज आम आदमी हमारे देश की अन्य बड़ी समस्याओं पर नजर नहीं रखता वह काम केवल सरकार का है मानकर चलता है । आतंकवादी हमलों से कोई परेशान नहीं होता उसमे शहीद हो रहे सुरक्षा कर्मियों के लिए किसी को कोई भी दुख नहीं होता। कारण देश भक्ति में कमी आना है सभी अपने आप को ज्यादा ही आज़ाद महसूस कर रहा है।
हमारे देश की संस्कृति में महिलाओं के लिए विशेष जरूरत होती है की वे अपनी मर्यादा और सम्मान के लिए सदैव सतर्क हो । उनको पूर्ण आज़ादी हो किन्तु इसका मतलबी यह नहीं कि वे मर्दों जैसे रात में भी निडर होकर रहे। हमारे देश की मानसिकता में अभी इतना ज्यादा बदलाव नहीं आया है कि महिलाएं स्वतंत्र होकर कुछ भी करें । आवश्यकता है कि अपने आप को सुरक्षित कैसे रखकर काम करें उसके लिए जरूरी है कि भारतीय समाज की वेशभूषा का उपयोग हो, फिल्मों में दिखाए जा रही अवास्तविक बातों को ना अपनाये। आदमी हो या महिला सभी की सुरक्षा के लिए कई क़ानून है किंतु हमारा भी दायित्व है की हम कैसे इस समाज में अपने ज्ञान,संस्कार, शिक्षा, शिष्टाचार व नैतिक मूल्यों का परिचय दे और उसके प्रति खरे उतरे । शायद तभी यह संभव होगा कि हमारी देश की संस्कृति बच पाये।
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