02 अक्टूबर 2014 के दिन का सूर्य जब
एक अलग चमक के साथ पूर्व दिशा से संपूर्ण धरती को अपनी किरणों से रोशन कर रहा था
तब हमारा देश एक नई क्रांति के लिये जाग कर “स्वच्छ भारत अभियान” की ज्योत जगा चुका था। भारत के लोगों ने इस दिन शानदार एकता और अखण्डता का
परिचय देते हुए भरपूर जोश और उत्साह से एक साथ प्रतिज्ञा लेकर स्वच्छ भारत के इस महान कार्य, जो गांधी जी के स्वच्छ भारत का अधूरा सपना भी था, के प्रति पूर्ण समर्थन, समर्पण दिखाया वो निश्चित
रूप से महान और लाजवाब था। जिसने एक बार फिर आज़ादी के दिनों की
कोई बडी क्रांति की यादें ताजा कर दी। इस “स्वच्छ भारत अभियान” में हम सभी को स्वयं
से शुरुआत करके अपने आसपास, गलियों, सड़कों, मोहल्लों, गावों, शहरों एवं अपने
कार्य स्थल से गंदगी को दूर करना और ज्यादा से ज्यादा लोगों में स्वच्छ्ता के प्रति जागरूकता बढाकर सफाई के प्रति
रूची पैदा करना है। हम यह आशा करते है, कि जब इस अभियान का आगाज बहुत अच्छा
हुआ है तो इसका अंजाम भी अच्छा ही होगा। हमने आज़ादी की लडाई में तो कोई बलिदान
नहीं दिया था किंतु यदि इस कार्य को हम जीते जी पूर्ण कर सकें तो यह हम सबका धरती
मां की सेवा के रूप में बलिदान ही होगा।
जैसा हम सब को यह विदित है, कि भारत
सरकार ने “स्वच्छ भारत अभियान” को राष्ट्रीय स्तर पर चलाने का संकल्प लिया है। इस अभियान
का शुभारंभ हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री
श्री नरेंद्र मोदी ने औपचारिक तौर पर गांधी जयंती के मौके पर 02 अक्टूबर 2014 को जोर शोर से किया । इस कार्य को संपूर्ण करने का लक्ष्य गाँधी जी के
150 वें जन्म दिवस 02 अक्टूबर 2019 तक निर्धारित किया
गया है। आज यह हर्ष का विषय है, इस अभियान का असर आम जनता में अब दिखने लगा है। आज हमारे देश के आम लोग,
नेता, अभिनेता, खिलाडी, आम व्यापारी, बड़े बड़े उद्योगपति तथा सामाजिक संगठन आदि इस महान कार्य के
प्रति जागरूक होकर अपना अपना निस्वार्थ भावना से बहुमूल्य योगदान दे रहें है। अत: लोगों में सफाई के प्रति बदल रही सोच से आशा जगी है कि हमारा देश भी गंदगी से
मुक्त स्वच्छ तथा स्वस्थ राष्ट्र बन सकेगा।
आईये इससे पहले कि हम देश में बढती गंदगी की समस्या
के कारणों व निदानों और इस कार्य में हो रहे भ्रष्टाचार के विषय पर गंभीरता से विचार
करें उससे पहले हमें गांधी जी के स्वच्छता
के प्रति प्रयासों और आदर्शों को भी मह्त्वता के साथ अवश्य याद करना होगा।
गांधी जी का सपना और उनके प्रयास – गांधी जी ने स्वच्छ भारत की कल्पना की थी इसलिये
उन्होंने सफाई के महत्व को अपने जीवन में अधिक गंभीरता से लिया था। उनके सपनों को
साकार करने हेतु कई योजनायें बनाई गयी किंतु हम विफल रहे। आईये संषिप्त में उनके
द्वारा सफाई हेतु किये गये कुछ खास प्रयासों पर नजर डालते है;
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गांधीजी ने
अपने बाल्यावस्था में ही भारत के लोगों में स्वच्छता के प्रति उदासीनता की कमी को
महसूस कर किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदंड की
आवश्यकता को समझा। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत तक अपने पूरे जीवन काल
में निरंतर बिना थके स्वच्छता को अपने
स्वयं के आचरण में लाकर लोगों को
जागरूक करने का भरपूर प्रयास जारी रखा था।
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वह हाथ से मैला
ढोने और किसी एक जाति के लोगों द्वारा ही सफाई करने की प्रथा को समाप्त करना चाहते थे। उनका कहना था कि जो काम एक भंगी दूसरे लोगों की गंदगी साफ करने के लिए करता है, वह काम अगर अन्य लोग भी करते तो यह बुराई कब की समाप्त हो
जाती।
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गांधीजी के लिये एक स्वच्छता बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा था। उन्हें दृढ़ विश्वास था कि सफाई का कार्य प्रत्येक व्यक्ति का होना चाहिये। लेकिन उनके इन
महान गुणों, आचरणों, मूल्यों और सिद्धातों को लोगों ने अपने में समाहित नहीं
किया। हमने उनके अभियान को योजनाओं
में बदल कर लक्ष्यों, ढांचों और संख्याओं तक सीमित करके तंत्र पर ध्यान दिया और मजबूत भी किया किंतु हम उन तत्वों को
भूल गये जो व्यक्ति में मूल्य स्थापित करता है।
गंदगी है एक गंभीर मुद्दा – आज देश
की सवा करोड आबादी को चहुंओर बढ्ती गंदगी और स्वच्छ्ता की नाकामी से लडते हुये प्रदूषित
वातावरण के बीच गुजर बसर करना पड रहा है। इस कार्य के लिए अनेक योजनाये बनाई गई
किंतु कोई ठोस सफलता नहीं मिल सकी। देश की तेजी से बढती जनसंख्या को देखते हुये यह
निश्चित ही आने वाले समय में ज्यादा भयावह व खतरनाक होकर गंभीर बीमारियों को जन्म
देगी और हमारे साथ आने वाली भावी पीढी को बुरी तरह से प्रभावित करके कमजोर और
बीमार बना देगी। हमारी सरकार और शहर की नगर पालिका की नैतिक
जिम्मेदारी होती है कि वह नियमित साफ सफाई का ध्यान रखे। हालांकि सरकारी तंत्र और
उसके सफाई कर्मचारी इस कार्य में प्रतिदिन कार्यशील भी रहते है, फिर भी गंदगी बढ़ती ही जा रही है। देश की राजधानी सहित कई भारतीय शहरों में मलेरिया, चिकुनगुनिया, डेगूं और अन्य खतरनाक बीमारियां जैसे कैंसर आदि भी गंदगी की
वजह से बदलते मौसम में फैली और पनप रही हैं, जिससे होने वाली मौतें का
क्रम अभी भी बदस्तूर जारी हैं। यह हमारे देशवासियों के लिए एक बडा सबक है। हमारे
देश को अन्य विकासशील और विकसित देशों में एक बीमारू देश की
संज्ञा भी दी जाती है और एक गंदे बदबूदार, पिछड़े और सपेरों के देश के रूप में
सदैव शर्मिंदा होना पड़ता है। जिसके फलस्वरूप हमारे देश में विदेशों से आने वाले
पर्यटक व विद्यार्थी यहां आने से कतराने लगे है। जो हमारे देश का आर्थिक दृष्टि से
पिछडने का कारण है। क्या इस सब के जिम्मेदार कहीं हम ही तो नहीं है ? इस बढती गंदगी और प्रदूषण के
लिये सरकार और प्रशासन तंत्र की गलत नीतियों, योजनाओं और भ्रष्टाचार के
साथ सफाई के प्रति हमारा स्वार्थी रवैया, हमारी बुरी आदते व
संकीर्ण मानसिकता पूरी तरह से जिम्मेदार है। जिसे हम कभी
भी नकार नहीं सकते।
गंदगी के लिये कौन है जिम्मेदार- हमारी देश की इस गंभीर समस्या के बीच कभी कभी हम यह सोचने और कहने पर विवश हो
जाते है, कि काश हमारा शहर भी दूसरे देशों
के सुन्दर शहरों जैसा होता, जहां
साफ सुथरी चौड़ी सड़कें, सुन्दर हरे भरे पार्क, बाज़ार, अस्पताल, स्कूल आदि रहते है। विदेशों के शहरों की दिखती स्वच्छता के
पीछे वहां की सरकारों की शहरीकरण के लिये बनाई भ्रष्टाचार रहित सही योजनाबद्ध
नीतियां और नियम है। इसके अतिरिक्त वहां के लोग नैतिक मूल्यों का परिचय देते है और
स्वच्छता को बनाये रखने हेतु कडे नियमों का पालन करते हुये श्रमदान के लिये झिझकते
नहीं है। हमारे
देश में तो लोग सार्वजनिक स्थानों के लिये बडी बडी सुविधाओं हेतु आंदोलन करते है और
सुविधायें मुहैया होने के बाद उसका दुरुपयोग करते है तथा बनाये गये सरकारी कानूनों
को ठेंगा दिखाकर मजाक का विषय बनाकर गंभीरता से नहीं लेते है। मूंगफली और केले के
छिलकों तथा अन्य बेकार वस्तुओं से भरे पोलिथिन को निर्धारित स्थान या कूडेदान(डश्टबिन)
में ना फेंकने के बजाये रास्ते पर ही या आसपास फैंक दिया जाता है, कही पर भी थूंक देना तो बड़ा सरल काम है। इससे यह स्पष्ट है कि हम लोगों मे शिक्षा,
शिष्टाचार और नैतिक मूल्यों की अपार कमी है। आईये हमारे शहर या गांव की कुछ प्रमुख सार्वजनिक जगहों
का अवलोकन करें, जहां बढते दुरूपयोग से ग़ंदगी ज्यादा आसानी से देखी जा सकती
है, जिससे हमारे अंदर कुछ सवाल
भी पैदा हो रहे है;
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बाज़ार, पार्क, फल और सब्जी मंडियां आदि। इन सभी रोजमर्रा के रास्तो, बाज़ारों और स्थानों के चारों तरफ उपयोग कर फेंके गये पोलिथीन, कागज के पैकेट, अध जले बिडी सिगरेट के टुकडे, पान खाने वाले और ना खाने वाले लोगों की पीक और थूक, कूड़ा-कचरा के ढेर और मल
मूत्र से भरे बहते नाले, सड़ी हुई सब्जी और फल आदि से सनी गंदी सड़कों में फैली गंदगी से हम सभी काफी
वाकिफ है। क्या हमें इन स्थानों में गंदगी करके रहना अच्छा लगता है ?
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हमारे धर्म स्थल मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च आदि को भी हमने नहीं छोडा जहां हम श्रद्धा
से भगवान के पास पूजा अर्चना और शांति प्राप्त करने के लिये जाते है। वहां भी आस पास सडे हुये फल फूल तथा पूजा सामग्री के कचरे
के ढेर बढाने के लिये हम ही दोषी है। तो क्या ऐसे पवित्र स्थान पर हमें शांति
मिलेगी ?
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हमारी पवित्र नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कृष्णा और कावेरी आदि
भी पूरी तरह से नदियों में प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमाओं, शवों की हड्डियां और राख और पूजा साम्रग्री के नदियों में
प्रवाहित करने से प्रदुषित हो गयी है। नदियों के किनारों एवं घाटों पर कूडा कचरे के
ढेर तथा अन्य सामग्रीयों के जमा होने से गंदे व प्रदुषित होते घाटों और नदियों के
जल आदि से बीमारियों को पनपने का कारण है जो हमारे स्वास्थ्य के लिये हाँनिकारक है।
क्या यह प्रदूषित जल हमारी मौत का कारण नहीं बनेगा ?
सरकारी गंदगी के
अड्डे – आईये कुछ आवश्यक सरकारी और गैर सरकारी भवनों, कार्यालयों आदि के अंदर और बाहर
परिसर में जमा गंदगी पर नजर डालते है जहां बीमारियों की असली जड भी देखने मिलती है
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सरकारी/शासकीय और गैर सरकारी कार्यालयों के भवनों आदि के कमरों, सीढियों में धूल मिट्टी, कागज के ढेर, मकडी के जालों से भरी पुरानी लकडी व लोहे की टूटी फूटी
आलमारीयां, टूटी खिडकीयां तथा गंदे शौचालयों
से गंदा बहता मलमूत्र और पानी सहज ही देखने मिल जाता है। इसके अलावा लोक निर्माण
विभाग आदि के द्वारा किये जा रहे निर्माण कार्य का अधूरा अव्यवस्थित पडा मलवा, ईट गिट्टी और पेडों की लकडी, पत्ते आदि अन्य सामान भी गंदगी को बढाने में सहायक होती है जो जहरीले कीडे
मकोडे, मच्छर आदि के पनपने का घर है । क्या इसके लिये सरकार जिम्मेदारी नहीं है ?
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सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों के अंदर वार्डों, शौचालयों आदि की दशा तथा अस्पतालों के परिसर के तरफ खुले
में दीवार मूत्रालय से बहते मलमूत्र की बदबू और गंदगी ऐसी है कि यदि वहां स्वस्थ
आदमी भी कुछ दिन रह ले तो वह भी बीमार होकर ही बाहर आयेगा। रोगियों के उपयोग की दवाई, इंजेक्शन आदि और उसका रख
रखाव, बिस्तर, स्ट्रेचर, चिकित्सक और आपरेंशन थियेटर के कमरें और अन्य उपकरण जैसी जरूरी
सुविधाओं में भी स्वच्छ्ता का स्तर निम्न स्तरीय है। क्या यह लोगों के
जीवन से खिलवाड नहीं है ? यहां की जरूरी सफाई व सुविधाओं की कमी के
लिये प्रशासनिक भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार है।
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हमारे देश के शासकीय व प्रायवेट शिक्षा मंदिरों में आवश्यक सफाई
और व्यवस्थाओं की कमी की खबर हमें रोज ही देखनें सुनने मिल ही जाती है। बच्चों के
लिये खेलकूद के मैदान, कक्षायें, बैठने के डेस्क, शौचालय, पार्क, खानेपीने की व्यवस्था आदि में बढती
गंदगी को नकारा नहीं जा सकता। जिसकी वजह से पनपते मच्छरों के काटने से आये दिन बच्चे
बीमार होकर घर आ रहे है तथा उनकी पढाई लिखाई में अनावश्यक बाधाये पहुंच रही है। तब
ऐसे बुरे हालातों में क्या देश का भविष्य उज्जवल हो सकेगा ?
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आज हमारे देश
के लोगों के प्रमुख आवागमन के साधन भारतीय रेलवे तथा बस स्टेशनों में
गंदगी का बुरा आलम है। रेलवे के स्टेशनों, रेलवे डिब्बों
और उनके शौचालयों को साफ रखने के लिए श्रमिकों और कर्मचारियों को तो रखा जाता है
किंतु स्वच्छता कहीं नजर नहीं आती है। यात्रा करने वाले पढ़े लिखे लोगों को भी
शौचालयों को सही तरीके से इस्तेमाल करना नहीं आता और डिब्बों में कूड़ा फैलाना तो
आम बात है। ऐसा ही हाल बस स्टेशनों का भी है। इसके अलावा कई अन्य सरकारी और गैर
सरकारी क्षेत्र के कई बडे और छोटे औद्योगिक संस्थान है जहां उनके अपशिष्ट पदार्थो/रासायनिक
तत्वों व कंप्युटर कचरे आदि से हो रहे जल प्रदूषण और गंदगी का बोलबाला है। इसके
लिये कौन जिम्मेदार है ? निसंदेह सरकार और हम। कैसी हो कार्यनीति - हम यह जानते है कि साफ सफाई से युक्त माहौल में
रहना और कार्य करना एक सभ्य और पढे लिखे विकसित समाज को इंगित करता है। अत: सभी यह प्रयत्न करें कि हमारी ओर से गंदगी ना हो और दूसरे को भी गंदगी करने से रोकें अन्यथा हम इस कार्य में सफल नहीं हो सकेंगे। हम गंदगी से कैसे निजात पा सकें, इसके लिये सरकार द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे है। भारत
स्वच्छ अभियान के कार्य में सहयोग के लिये अपने देश और विश्व के अन्य देशों से और
वहां के लोगों से भी अपील की है। इस अभियान में विश्व बैंक के अलावा अमेरिका और यूरोप के बहुत सारे देशों ने जरूरी
सहयोग देने हेतु रूची दिखाकर हाथ बढाया है। यू.एस.एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसएआईडी) ने शहरी विकास मंत्रालय के साथ विशेषज्ञता व नवीन मॉडल
प्रदान करने हेतु एक करार किया है। इस अभियान में अगले 5
वर्षों के लक्ष्य में 1 लाख 34 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसमें केंद्र सरकार का शेयर लगभग 15 करोड़ होगा। भारती और टीसीएस जैसी कंपनियों ने इस मिशन में आर्थिक
मदद देने की घोषणा की है। सरकार को विदेशों की तरह ही छोटे व बडे स्तर पर जल्द सफाई
कार्य के लिये बडी बडी आधुनिक मशीनों की आवश्यकता पडेगी । इसके लिये सरकार देश और
विदेश की कंपनियों की मदद ले रही है। जिससे सफाई कार्य के लक्ष्य को पूरा करने में
गति मिल सकेगी। भारत स्वच्छ अभियान के तहत सरकार ने देश के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में गंदगी
के पूर्णनिदान हेतु कई महत्वपूर्ण योजनाओं और लक्ष्यों को विभिन्न नीतियों के
माध्यम से क्रियान्वित करने का संकल्प लिया हैं। जिनमें कुछ मुख्य इस प्रकार है;
1. खुले स्थान
पर मल त्याग की पारंपरिक आदत को 2022 तक पूरी तरह समाप्त करना
और इसे इतिहास की घटना बना देना। अधिक से अधिक शौचायलों का निर्माण और उसका
उपयोग जरूरी हो। कारण यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2012 में हमारे देश की आधी जनसंख्या (करीब 63 करोड़) खुले में शौच करती
है।
निदान - हाल
ही में गावों और शहरों में खुले में शौच के कारण हुई बलात्कार की घटनाये बढने से महिलाओं के अंदर असुरक्षा की
भावना बढी है, अत: ज्यादा से ज्यादा घरों
के अंदर शौचालयों का निर्माण करना होगा। इस सुविधा से बाहर शौच की आदत समाप्त
होगी। इसके लिये प्रचार कार्यक्रम को सरकार के अलावा मीडिया और सामाजिक संगठनों
द्वारा प्रसारित किया जा रहा है।
2. ठोस और
तरल अपशिष्ट के सुरक्षित प्रबंधन के लिए प्रणालियों को प्रचालित करना। सभी
सार्वजनिक स्थानों पर अधिक से अधिक कूडेदानों का इस्तेमाल तथा
निर्माण जरूरी हो। 4041 शहरों में ठोस कचरा प्रबंधन का इंतजाम करना पहला
मकसद होना चाहिये।
निदान – सार्वजनिक स्थान बाजार, पार्क, सडक, मंदिर, मस्जिद या
गुरुद्वारे हो या फिर नदी, तालाब या झीलों आदि जैसी जगहों पर
कूडा कचरा ना करें और कुडेदान का ज्यादा उपयोग करें । जिससे गंदगी नहीं बढेगी, प्रदुषण मुक्त पानी पीने को मिलेगा और सभी स्वस्थ रह पायेंगें। साथ ही
दवाई के खर्च में कमी आयेगी।
3. उन्नत
स्वच्छता व्यवहारों को अपनाने के लिए लोगों में जागरूकता बढाना। सुनिश्चित करना
कि प्रदाता के पास इस स्तर पर सेवाओं की प्रदायगी की क्षमता तथा संसाधन हैं। हाथ
से मैला ढोने की प्रथा से निजात पाना कारण राज्यों ने वर्ष 1993 और 2013 में इस प्रथा को समाप्त करने हेतु बनाये कानून को अभी तक लागू नही किया है।
निदान - गंदगी के लिये अशिक्षा और नैतिक
मूल्यों की कमी एक बडा कारण है। अत: बचपन से ही स्वच्छता के प्रति
आदतें सीखाना अब जरूरी हो गया है। अभी देर नहीं हुई है, नई
तालीम को नए सिरे से शुरू करना होगा। ऐसी शिक्षा जिसे करके सीखा जाए वही उपयोगी
होती है। गांधी जी की स्वच्छता के लिये दी गई शिक्षा को अपने जीवन में ढालने से हम
बहुत कुछ सीख सकते है।
4. ग्रामीण
विकास, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सुभेद्य वर्गों से
संबंधित सार्वजनिक क्षेत्र एजेंसियों में सहयोग को उद्दीपित करना और समर्थ बनाना।
कारण विश्व स्टील के पेसीफिक इस्टिट्यूट के आंकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या के
बहुत बड़े प्रतिशत के पास स्थायी विकास के लक्ष्यों के लिये सुरक्षित स्वच्छता की
पहुंच नहीं हो पाई है।
निदान गंदे
वातावरण में सांस लेने से भी सामान्य आदमी की कार्य क्षमता,
क्रियाशीलता और एकाग्रता में निसंदेह कमी आती है, जिससे सभी सदैव थके हारे, बीमार
और उर्जा से रहित दिखाई पडते है। यह जीवन शैली स्वयं हमारी व देश की प्रगति में
विशेष रूप से बाधक होती है।
5. जल ही जीवन है इसे स्वच्छ रखना अति आवश्यक है, अत: गंगा सहित अन्य नदियों की सफाई कर नदियों में पूजा सामग्री
का कचरा, पोलिथीन, प्रतिमायें डालने और विसर्जन पर पूर्ण प्रतिबंध अनिवार्य
कर जल प्रदूषण दूर करना जो आम लोगों और जानवरों के कई गंभीर रोगों और उससे होने
वाली मौतों के लिये जिम्मेदार है।
निदान -नदियों में कूडा कचरा प्रवाहित ना करें तथा नदियों के
किनारों एवं घाटों पर कूडा कचरे के ढेर तथा अन्य सामग्रीयों के जमा होने से गंदे व
प्रदुषित होते घाटों और नदियों के जल आदि से बीमारियों को पनपने का कारण है जो
हमारे स्वास्थ्य के लिये हाँनिकारक है।
6. कार्यनीति
के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए व्यापार, शिक्षा और स्वैच्छिक क्षेत्र के
भागीदारों के साथ मिलकर कार्य करना। इसमें सभी सामाजिक और राजनैतिक संगठनों को
कार्य करना आवश्यक होगा।
निदान - प्रदुषित हो रहे जल और पर्यावरण
के लिये बडे और छोटे उद्योगों के उद्योगपतियों,
व्यापारियों के लिये कडे नियमों को बनाकर कठिन दंड का प्रावधान होना चाहिये। एक
निश्चित स्थान पर कूडा व अपशिष्ट पदार्थों को जमा कर उसे जलाकर समाप्त किया जाये।
आज 21वीं
सदीं में हमारा देश विश्व के गिने चुने देशों
में लगातार आर्थिक सामाजिक, शिक्षा और वैज्ञानिक क्षेत्रों में
एक शक्तिशाली एवं पूर्ण विकसित राष्ट्र के रूप में अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा और पहचान
बनाने में अग्रेसर है। आज विदेशों से हर वर्ष पर्यटक तथा विद्यार्थी हमारे देश में
आकर हमारी संस्कृति और सभ्यता के प्रति जानना चाहते है और इससे वे हमारे देश के
प्रति आकर्षित होकर हमें आदर की दृष्टि से देख रहें है। अत: आर्थिक व
सामाजिक रूप से शक्तिशाली बनने के लिये हमें विदेशों से व्यापार, शिक्षा
और उद्योग आदि में सहयोग और बढावे को महत्व देना होगा। उसके लिये हमें वहां से आने
वाले लोगों के लिये एक रहने लायक आवश्यक स्वच्छ वातावरण और शिक्षा,
चिकित्सा जैसी आदि मूलभूत सुविधाये प्रदान करना होगी। इसके लिये जरूरी है कि सरकार
पहले इसके लिये महत्वपूर्ण योजनाओं को शीघ्र क्रियान्वित करें तथा उन सभी जरूरतों
को प्राथमिकता के साथ अंतिम रूप देकर एक निश्चित समय सीमा में पूर्ण करें। इससे हमारे
देश में नई नौकरियां पैदा होंगी जो बेरोजगारी की समस्या कम करने और पर्यटन को
बढ़ावा देने के मामले में अहम भूमिका अदा करेगी।
आज की महती
आवश्यकता है, कि हम महात्मा गांधी जी के सपनों का
पूर्ण स्वच्छ और स्वस्थ भारत बनाने के लिये “भारत स्वच्छ अभियान” को एकजुटता, कर्तव्यनिष्ठा और विश्वास के साथ सही शक्ति और दिशा प्रदान
करें। देश के प्रति संकल्पित होकर अपने दायित्वों का निर्वहन करें एंवं शिष्टाचार
और नैतिक मूल्यों को अपने में समाहित कर एक सभ्य समाज का निर्माण करें। आईये इस सकारात्मक सोच के साथ अपने कामों की
व्यस्तता के बीच स्वयं से शुरू करके तथा 100 अन्य लोगों को
जागरुक करते हुए गंदगी ना करने का प्रण करें तथा अपने कार्यालय, घर, आस पास और सोसाएटी, समाज, कार्यालयों,
अस्पतालों, सार्वजनिक जगहों जैसे बाजारों, रास्तों, शादी
या धार्मिक कार्यक्रमों, पवित्र
स्थानों के स्थलों आदि में हफ्ते में दो घंटे श्रमदान करके इस कार्य के निष्पादन में उचित योगदान देकर
स्वच्छ भारत का निर्माण करें। तब निसंदेह हमारे देश का भी भविष्य
सुंदर स्वच्छ, स्वस्थ और उज्जवल होगा।
4 comments:
Manoharji,
very nicely written ,keep it up.
बहुत ही सुन्दर लेख
1.no
🤗🤗🤗
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