जैसा
हम सभी भलीभांति जानते है, कि
हमारा देश अनेक सामाजिक,
आर्थिक, सुरक्षा, राजनैतिक
से जुडे मामलों तथा महिला सुरक्षा,
नशाखोरी और ना जाने कितनी बडी बडी समस्याओं और परिस्थितियों से बुरी तरह से ग्रसित
तथा जकडा हुआ है। इन समस्याओं के निराकरण हेतु पहले भी एक मत से अनेक प्रयास होते
रहे है। किंतु आज सरकार
और सामाजिक संस्थाओं में उच्च पद पर विराजमान कुछ सम्मानित नेता और समाजसेवी लोग इन
समस्याओं के सम्पूर्ण निदानों के कार्य के
प्रति अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। उसके बाद भी देश की प्रगती में बाधक संकुचित सोच वाले हमारे समाज के
कुछ मतलबी लोग और मुख्य रूप से एकता और अखंडता का चोला पहने हमारी राजनैतिक पार्टियों
के कुछ पाखंडी स्वार्थी नेता इन जरूरी और मूलभूत समस्याओं से उबरने हेतु किये जा
रहे अभूतपूर्व प्रयासों में समर्थन और बढावा ना देते हुये जितनी ज्यादा से ज्यादा
हो सके निंदा, आलोचना
और अवहेलना कर देश की जनता को भ्रमित कर रहें है। इस संकुचित सोच से लोगों में गलत
संदेश जा रहा है, जिससे
झूठ और फूट को बढावा देकर हमारी एकता और अखंडता को तोड कर देश को विभाजित रखने का
काम लगता है। इसके कारण ही हमारी समस्यायें आज भी वहीं की वहीं है। क्या यही
हमारी नैतिकता और मानवता के मूल्य है ?
यदि इस प्रकार की मानवता और मानसिकता रही तब ऐसा महसूस होता है कि आने वाले
समय में हमारी समस्याओं के निराकरण के शुरूआती अच्छे प्रयासों से मिलने वाले बडे
फायदों से हम वंचित होंगे और सारे प्रयास निरर्थक होकर अधूरे रह जायेंगे। आज
आवश्यकता है इन बातों पर पुनर्विचार करके देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाये जिससे
देश के ही लोगों का सम्मान और भला होगा । आईये कुछ मुद्दों पर विचार करते है;
भारत
स्वच्छ अभियान
= एक पहलू यह है कि स्वस्थ और निरोगी होकर खुशहाल रहने के
लिये सभी लोग चाहते है कि हमारा देश स्वच्छ हो,
कोई भी नहीं चाहता कि कहीं भी गंदगी दिखे। स्वच्छता के इस कार्य की सार्थक और
सकारात्मक पहल के लिये हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक अच्छी
सोच के साथ भारत को साफ सुथरा बनाने के लिये अभियान शुरू किया। इसका ज्यादातर
लोगों ने स्वागत कर अपना समर्थन दिया और सफाई की शुरूआत भी कर दी है। पिछले दो
महिने में ही हम सबने इसका असर भी देखा है,
ऐसा पूर्ण विश्वास है कि यदि हम सब गंदगी ना करें तथा सफाई रखने का संकल्प करें तब
सबके प्रयास से हम इस अभियान में अवश्य ही सफल होंगे।
एक दूसरा
पहलू यह भी है कि समाजसेवा से जुडी यह अच्छी बात हमारे बडे बडे नेताओं के साथ हम
में से ही कुछ स्वार्थी बडे लोगों को चुभकर गले नही उतर रही है। ये स्वार्थी नेता
और बडे लोग इस महान कार्य में मदद करने के बजाय कई कमीयों को गिना कर इसे झूठा
नाटक बता रहे है। नेता तो हमेशा मुफ्त में मिल रही सफाई व्यवस्था में रहते है
उन्हें उन लोगों की चिंता कहां है जो गंदगी में अपना जीवनयापन करते है और जिनके
वोट के कारण ही वे शानदार जिंदगी जी रहे है। ये नेता सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री
की आलोचना करते थक नहीं रहे है। ऐसी संज्ञा भी दे रहे है कि प्रधानमंत्री को कुछ
काम नही है इसलिये सबको झाडू पकडा दी है। जो प्रधानमंत्री देश और विश्व में हमारे
देश के सभी मामलों और गंभीर समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से कई महान कार्य कर
रहे है। क्या
तब यह बात इन नेताओं से सुनने में अच्छी व शोभायमान लगती है ? क्या यही है इनकी नैतिकता ? शायद
इन्हें यह नहीं मालूम कि लोगों की अच्छी भावना को ठेस पहुंचाकर अपनी रही सही इज्जत
को भी नष्ट कर रहे है। कहते
है न कि विनाश काले विपरीत बुध्धी, इससे उनका हश्र क्या होगा ये भगवान ही जाने। किंतु मुझे
लगता है कि अभी भी समय नही गया है, यदी
चाहे तो वे भी अपनी गल्तियों को सुधारकर और अपना हाथ आगे बढाकर सबके साथ कंधे से
कंधा मिलाकर स्वच्छ भारत अभियान के कार्य में अपना योगदान कर सकते है, जो एक अच्छी मानसिकता और नैतिकता
का परिचायक होगा और जिससे निश्चित ही देश की भलाई का कार्य होगा।
महिला सुरक्षा आये दिन छेड्छाड, बलात्कार, तेज़ाब कांड और हत्या के
मामलों से महिलाओं की सुरक्षा गम्भीर होती
जा रही है। निर्भया कांड के पश्चात कई कडे कानून बनाये गयेतथा पुलिस को दोषी बनाकर
कई पुलिस प्रशासन में बदलाव किये, किंतु उस पर
अमल नहीं होने से अपराधी निर्भय होकर महिलाओं पर अत्याचार कर रहे है। राजनैतिक
पार्टियां अपनी रोटियां सेंक रही है, बडे शहरों में कुछ पुरुष और महिला नेता एक दो दिन धरना और प्रदर्शन
के साथ अपना विरोध प्रकट करती है और इस विषय पर रोज ही बडी बहस करती है, किंतु इस समस्या का स्थाई हल एक राय से नहीं निकाल पा रही है।
इसका हल निकालने और सुरक्षा के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया शायद इसलिये तो नहीं की
यह मामला महिलाओं का है, जिसे समाज में नजर अंदाज किया जा सकता
है।
एक पहलू यह होना चाहिये, अब जरूरत है, कि महिलायें खुद इसका हल निकाले। सबसे पहले शहर की सभी महिला
कर्मियों को समाजसेवी महिलाओं और सरकार में विराजमान महिला नेताओं के साथ एक साथ बैठकर
एकजुटता दिखाते हुये इस समस्या के लिये ठोस उपाय ढूढने होंगे। उसके बाद उन्हें सरकार
व पुलिस प्रशासन के खिलाफ भी साथ ही आक्रामक रूख अपनाते हुये लडाई लडनी होगी और अपने
सुरक्षा के लिये जैसे को तैसा वाले तरीके से कुछ त्वरित मांगों को रखकर घोषणा करनी चाहिये कि वे अब किसी भी पार्टी
को वोट करने के लिये मतदान में हिस्सा नहीं लेंगी। महिला के बलात्कार में अपराध करने
वाले को और तेज़ाब से किये जा रहे महिलाओं पर हमले के दोषी को पूर्णतया दोषी पाये जाने पर बीच चौराहे पर पहले कोडों से मारा जाये फिर तुरंत
फांसी की सजा का प्रावधान किया जाये। तेजाब कांड वाले अपराधियों को सड़क पर पकड़ कर नंगा करके पुलिस के निर्देशन में तेज़ाब से ही नहलाया जाए ताकि आगे से तेज़ाब फैकने वालों पर कड़ाई से सख्ती हो सके तभी इसका हल होगा।
दूसरा पहलू यह भी है कि हमारा देश आज भी शिक्षा में कमी के कारण
और मानवता जैसे आचरण में काफी पिछडा हुआ है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार में हमारी
अश्लिलता की सभी हदें पार करती काल्पनिक फिल्मों का बडा योगदान है सरकार को चाहिये
इस प्रकार की फिल्मों के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाये। शिक्षित और अशिक्षित सभी
लोग इस काल्पनिक फिल्मों से प्रेरित होकर ऐसी बडी भूल कर बैठते है जो जीवन में सरल
और वास्तविक नहीं होती है। पुलिस प्रसाशन, सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं को चाहिये की वे महिला कर्मियों
का विशेष ध्यान रखने के उपाय ढूढें । रात्री शिफ्ट में महिलाओं को कार्य करने के लिए
प्रतिबंध किया जाये जिसके फलस्वरूप महिलाओं
की सुरक्षा बढेगी और उन पर होने वाले मामलों में कमी के साथ सुधार होगा। और महिलाओं
का भी कर्तव्य बनता है कि इस बुराई से बचने में अपना योगदान दें। महिलाओं की स्वंत्रतता
अपनी जगह सही है किंतु ऐसी भी नहीं कि वे देर रात में घरों से बाहर घूमें क्योंकि अभी
ऐसा स्वंत्रत माहौल नहीं है हमारे देश का। अत: महिलाये स्वत: सतर्क रहते हुये अपना
कार्य करें तब यह संभव है कि उनकी सम्मान सहित सुरक्षा सदैव बनी रहेगी।
नशाखोरी नशे की लत जैसी समस्या
भी हमारे युवा पीढी के जीवन को अंधकार के रास्ते पर ले जा रही है । हमारे ही समाज के
बच्चों से लेकर बडे तक नशे की लत के आदी होकर अपने जीवन को खोखला और बर्बाद कर रहे है। समाज में फैली
यह सभी आदतें भी केंसर की तरह एक बीमारी है जिसका कोई स्थाई हल नहीं निकल रहा है।
इस को देखते हुये प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात के माध्यम
से नशे की लत में फंसे युवा लोगों और उनके परिवार को इससे मुक्ति पाने के लिये कुछ
सुझाव दिये जो वास्तव में अति उपयोगी और तारीफ के काबिल थे।
उनके इस सुझाव से विरोधी पार्टी के लोग उन्हें बधाई के बजाय
उन्हें तुरंत ही इस के लिये दोषी मानकर कट्घरे में खडा करने में नहीं चुके, और अजेंडा बनाने और ना जाने कितने कारण बताकर गलत साबित करना
चाह रहे है। इस संकुचित मानसिकता और सोच ने फिर से सवाल उठा दिये। क्या मोदी जी ने
लोगों को नशे की लत लगाई जो उनसे ऐसे प्रश्न पुछे जा रहे है । उन्होनें अपनी तरफ से
एक मार्गदर्शक के रूप में इस लत को दूर करने के उपाय बताये यह उनका बढप्पन था। आशा
है उनके सुझावों पर यदि अमल किया जाये तो यह समस्या हल हो सकती है।
ऐसी ही ना जाने कितनी
बाते और समस्यायें हमारे देश में रोज ही टीवी
के समाचारों के माध्यम से सुनने और देखने को मिलती है जिन पर रोज ही बडी बहसें होती
है । पक्ष और विपक्ष आपस में ही उलझ कर रह जाते है और बहस को राजनीति और धर्म सम्प्रदाय
से जोड्कर समाप्त कर देते है । उसका हल नहीं निकलता और मुद्दा वहींका वहीं रह जाता
है इससे स्पष्ट है, कहीं न कहीं हमारी मानवता और नैतिकता
समाप्त हो रही है ।
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