Sunday, January 18, 2015

“ॐ” शब्द के उच्चारण से पायें शारीरिक रोगों पर विजय

भारतीय योग को विश्व के 177 देशों के द्वारा स्वीकारनें के बाद संयुक्त राष्ट संघ से मान्यता मिल गई है। 
वैज्ञानिक रूप से आधारित भारतीय योग की विश्वव्यापी ख्याती हमारे देश के लिये एक महान उपलब्द्धि है। जो आज के युग में भी हमारी भारतीय संस्कृति के योग और परम्परायें, कलायें और चिकित्सा आदि में प्रत्येक काल की तरह बहुत ही वैज्ञानिक और प्रासंगिक है।  क्या आप जानते है कि योग क्रिया के अंतर्गत ही ॐ के उच्चारण की क्रिया को, जो प्राणायाम, अनुलोम और विलोम जैसे योग या शारीरिक व्यायाम की तरह ही है, को  प्रतिदिन 108 बार ॐ का उच्चारण करने से हमें अनेक शारीरिक लाभ होते है।  

पुरातन काल और पौराणिक इतिहास के ग्रंथो से ऐसा माना जाता है, कि सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति शब्द के नाद से ही प्रारम्भ हुई है। ॐ शब्द तीन अक्षरों अ, उ और म से बना है। जिसमें का अर्थ है, उत्पन्न होना या प्रारम्भ होना। का अर्थ उठना अर्थात विकास से होता है। तथा का तात्पर्य है, मौन/शांत हो जाना अर्थात  ब्रम्हलीन हो जाना। अत: ॐ शब्द में जीवन का पूर्ण सार छुपा हुआ है, जिसमें जीवन की उत्पत्ति (जन्म/बचपन) के बाद जवानी (उठना/विकास) और अंत में बुढापा (मरण/मौन/शांती)।  
प्रतिदिन ॐ के उच्चारण से उत्पन्न नाद और कम्पन हमारे शरीर की सभी इंद्रियों में उर्जा का संचार करता है, जिससे हमारे शरीर की आत्मा शुद्ध होती है, साथ ही हमारे आसपास का वातावरण भी शुद्ध होकर ओंकारमय हो जाता है। इसलिए हमारे हिंदु समाज में देवी देवताओं की पूजा अर्चना में उपयोग किये गये मंत्रो से पहले ॐ शब्द का उच्चारण सर्वथा अनिवार्य रूप से किया जाता है। अत: आज के युग में भी ॐ का उच्चारण करना हमारी भारतीय संस्कृति की परम्परायें, कलायें, चिकित्सा और योग आदि प्रत्येक काल की तरह बहुत ही वैज्ञानिक और प्रासंगिक है, जो हमारे मन, मस्तिष्क को शुद्ध कर शारीरिक लाभ प्रदान करता है।  
आईये ॐ के उच्चारण या जाप से हमारे शरीर के अनेक रोगों पर होने वाले स्वास्थ्यवर्धक और आरोग्यमय प्रभाव को जानते है;
1. थायरायड = ॐ का उच्चारण प्रतिदिन करने से उत्पन्न होने वाले गले में कम्पन से थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव पडता है जिससे हमें इस बीमारी से निजात मिलती है।
2. तनाव और घबराहट = प्रतिदिन ॐ का उच्चारण, शरीर में विकसित विषैले तत्वों और द्रव्यों को नियंत्रित करने का उत्तम साधन है जो हमें तनाव रहित कर घबराहट जैसे रोगों को नियंत्रित करके हमारे लिये लाभकारी होता है।
3. पाचन और खून का प्रवाह = इन बीमारीयों में ॐ का प्रतिदिन उच्चारण करने से पाचन शक्ति बढती है और खून के प्रवाह के साथ ह्रदय की धड्कनों को संतुलित करता है।
4. थकान और कमजोरी =  प्रतिदिन ॐ का उच्चारण से शरीर की नसों में खून का संचार बढता है जिससे थकान दूर होती है एकाग्रता बढती है और शरीर में युवा अवस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है ।
5. रीड की हड्डी और फेफडें = हमारे शरीर के इन प्रमुख अंगों का सबसे ज्यादा महत्व है और यदि इन अंगों में तकलीफ हो तो प्रतिदिन ॐ का उच्चारण करने से शारीरिक क्षमता बढने के साथ फेफडों को आवश्यक फायदा होता है।
अतः उपरोक्त बताये गये रोगों तथा अन्य रोगों पर ॐ का उच्चारण योग के साथ करने से अवश्य ही लाभ मिलेगा । जैसा हम सभी जानते है, यदि हमारा शरीर स्वस्थ्य और निरोगी काया का होगा तब हम सबसे सुखी और सबसे धनी इंसान होंगे, इसलिए हमें अपने शरीर को निरोगी बनाने के लिये समय समय पर कुछ चिंता अवश्य करनी चाहिये। हमने देखा है जो लोग प्रतिदिन व्यायाम/वर्जिश करते है वे शारीरिक रूप से ताकतवर और स्वस्थ्य रहकर सदैव क्रियाशील रहते है। अत: आप सभी से आशा है कि आप अपने व्यस्त कार्यक्रम में से कुछ समय निकालकर वर्जिश के रूप में प्रतिदिन ॐ का उच्चारण करेंगे और जीवन में सदा सुखी और स्वस्थ्य रहे।          
    

              

Friday, January 2, 2015

जीवन में सदा मुस्कुराते रहें


नव वर्ष 2015 का शुभारंभ हो गया है, आप सभी को नव वर्ष की अनेक हार्दिक शुभकामनायें देता हूं और ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि यह वर्ष आप सभी के लिये मंगलमय हो, आपका स्वास्थ्य उत्तम हो, आपके घर पर लक्ष्मी सदा विराजमान रहे, आपकी सारी भावी इच्छाओं को पूर्ति हो और आप जीवन के हर पहलू में सदा मुस्कुराते रहें।  

जीवनचक्र के दो मुख्य पहलू सुख और दुख होते है, इन दोनों पहलूओं के मध्य सामंजस्य बनाते हुये हमें जीवन पर्यंत सामना करते हुये चलना होता है। प्रथम पहलू सुख का अर्थ है, आपका जीवन निरोगी काया के साथ कुशलपूर्वक होना और जीवन में किसी बात की परेशानी बिना चहूंओर मंगल ही मंगल होना । आवश्यक अच्छा धन व ऐश्वर्यता, अच्छा स्वास्थ्य, अच्छा परिवार, अच्छी शिक्षा, अच्छा खानपान-रहनसहन, कार्य में अच्छी सफलता और सामाजिक आदर आदि जिसके साथ हम बिना किसी बात की चिंता किये अपने जीवन का कुछ समय आनंद और खुशहाली के वातावरण में व्यतीत कर लेते है, यही जीवन का सुख है।
वहीं मुझे लगता है, जीवन के दूसरे पहलू दुख का अर्थ है, हमारे जीवन के उपरोक्त बताये सुख के प्रकारों में कहीं ना कहीं कमी या व्यवधान आना जो हमारे अंदर अमंगलता का डर पैदा कर देता है और हमारी मानसिकता को थोडे समय के लिये निराशा का भाव उत्पन्न कर पूरी तरह से भ्रमित करके हमें विचलित कर देता है । किसी ने सही कहा है आगे सुख है तो पीछे दुख है हर दुख में एक सुख है । धन की कमी, शारिरिक रूप से स्वास्थ्य में खराबी या बीमारी, परिवार में एकजुटता में कमी, शिक्षा में कमी, कार्य में असफलता और सम्मान में कमी, पर्याप्त खानपान और रहनसहन में कमी आदि आदि परिस्थितियां हमें जीवन में कभी ना कभी झेलने पर मजबूर होना पडता है जिसे हम जीवन का दुख मान लेते है । किंतु यह जीवनचक्र की सच्चाई है इसे हमें सहज लेकर मात्र जीवन का छोटा सा कष्ट समझ कर मुस्कुराते हुये स्वीकार करना चाहिये उसी में जीवन का मजा है और यही जीवन जिने की कला है ।      
अत: यह सिद्ध होता है कि जीवन के दोनों ही पहलू सुख और दुख एक दूसरे के पूरक है। हम सभी सौभग्यशाली है कि भगवान ने हमें जो बहुमूल्य जिंदगी या जीवन दिया है उसे हम अपने अच्छे और भले कर्मों के द्वारा कर्तव्यों का पालन करते हुये परिपूर्ण करें और जीवन को आनंद के साथ मुस्कुराते हुये गुजारें । बुरे कर्मों या कार्यो को नकारे और उनसे सबक लेकर अच्छे कार्य करें क्योकिं हम जानते है कि बुरे काम का बुरा नतीजा ही होता है जो आपके जीवन को दुखी कर देता है।
मुझे लगता है कि वर्ष 2015 में हम यह संकल्प और प्रण करें कि हम हमारे जीवन के हर मोड और पहलू पर आने वाले सुखों और कष्टों के पलों को वास्तविकता से हंसते मुस्कुराते हुये व्यतीत करें जिससे हमें अपने भावी जीवन को सुधारने, सवांरने और समझने में मदद मिले और जिससे हमें जीवन की सम्पूर्णता के छुपे रहस्य की अनुभूती हो सके । अत: मुस्कुराते हुए रहने से हम हमारे बहुत से कष्टों पर विजय पा सकते है।  

अत: आज ही से हम अपने घर परिवार, आसपास, समाज और सरकारी कार्यो में मिलने वाले लोगों के साथ मिलजुल कर उनके हर सुख दुख में हंसते मुस्कुराते हुए सहयोग करें तो आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि हम हर जगह सफल होंगे जिससे हमारे जीवन का समय आनन्दपूर्वक कट जायेगा ।