Friday, December 26, 2014

एक म्यूजिक थेरेपी - संगीत का स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव

क्या आप जानते है कि जिस प्रकार "मौसम" सम्पूर्ण जगत में प्राणियों के स्वभाव,स्वास्थय  एवं मनोदशा पर अपना असर छोड़ता है, ठीक उसी प्रकार भारतीय शास्त्रीय संगीत भी विभिन्न ऋतुओं में मानव के पूर्ण व्यवहार, स्वास्थय और मनोस्थिति को बदलने की क्षमता रखता है। बसंत ऋतु में राग बसंत, राग बहार और वर्षा ऋतु में मिँया मल्हार, गौड़ मल्हार तथा सुर मल्हार राग गाये  जाते है, जिसके गाने या सुनने से हमें उस मौसमी ऋतु का अहसास होने लगता है । ऐसे ही राग दीपक से संगीत सम्राट तानसेन ने वातावरण में गर्मी उत्पन्न कर दी थी । अतः पुरातन काल से ही भारत में शास्त्रीय संगीत के विभिन्न रागों के सुरों से उत्पन्न गीत संगीत मानव में संवेग और जीवन में उत्साह उमंग व ऊर्जा का स्रोत निर्मित करने का दम रखता है ।  अतः हम कह सकते है संगीत का मानव जीवन में गहरा और सकारात्मक प्रभाव होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत के इन्हीं प्रभावों के कारण आज चिकित्सा के क्षेत्र में विभिन्न रोगों के उपचार में संगीत का योगदान भी लिया जा रहा है। इस महत्वपूर्ण म्यूज़िक थेरेपी और इससे होने वाले लाभों को बताते हुए मैंने, मेरी पत्नी और दो बच्चों के साथ कई जगहों पर संगीत कार्यक्रम के माध्यम से प्रदर्शित किया है जिसे लोगों ने काफी ज्यादा सराहा और इससे लोगों को लाभ भी मिला है ।  
 इंसान का संगीत के साथ गहरा रिश्ता सदियों से चला आ रहा है और संगीत का सितारों के साथ। यही कारण है कि संगीत सुनकर या गाकर कभी तो हम खुश तो कभी उदास हो जाते है। मनुष्य के शरीर पर ग्रह-नक्षत्रो का प्रभाव देखा जाता है, इस कारण शरीर और ग्रह-नक्षत्रो के परस्पर संबंध से प्रभावित होकर मानव कई रोगों से पीड़ित होता है। अतः इस स्थिति में जब ग्रह-नक्षत्र से सबंधित संगीत को सुना या गया जाए तो उस रोग के उपचार में मदद मिलती है। आज चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी अनेक रोगों के उपचार में संगीत की उपयोगिता को स्वीकार किया गया है और इसे चिकित्सा में अपनाने पर जोर दिया है। 
आज भागदौड़ से भरी जिंदगी के दौर में प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी रोग का शिकार है। ऐसे में आपके लिए सदैव निरोगी रहने के लिए भारतीय शास्त्रीय संगीत के गुनी संगीत विशेषज्ञों द्वारा किये गए शोध के अनुसार कुछ गाये जाने वाले भारतीय शास्त्रीय संगीत के रागों की जानकारी के साथ उन रागो पर आधारित हिन्दी फ़िल्मी से संबंधित नए-पुराने गानों, भजनों को उदाहरणगानों को हम आप तक पहुंचा रहे है। यदि इन गानों को दिन भर में मात्र २०-२५ मिनिट सुनने या गाने तब अनेक रोगों से ग्रस्त रोगी को काफ़ी राहत मिलती है। कुछ चुनिंदा भारतीय पुरानी फिल्मों के रागों पर आधारित गानों, भजनों आदि के कैसेट्स और सीडी बाजार में आसानी से मिल जाते है ,अतः यदि उन रागों पर आधारित गानों की पूरी कैसेट्स को तो सुने तो ज्यादातर रोगों का इलाज हो सकता है। 
मनो रोग  - डिप्रेशन, उदासीनता, जीवन के प्रति नीरसता आदि मनोरोगों में राग बिहाग व राग मधुवंती सुनना अत्यंत लाभदायी है। इन रोगों से संबंधित कुछ गीत है, जैसे 
-तुम तो प्यार हो सजना,मुझे तुमसे प्यारा कोई नहीं (सेहरा)
-सखी री मेरा मन उलझे, तन डोले (चित्रलेखा)
-तेरे सुर और मेरे गीत (गूंज उठी शहनाई )
-सखी री पी का नाम, नाम ना पूछो (सती सावित्री)
-मतवारी नार ठुमक-ठुमक चली जाये(आम्र पाली)
रक्त चाप-   उच्च रक्तचाप में धीमी गति और निम्न रक्त चाप में तीव्र गति के गीत सुनकर रक्तचाप को सामान्य किया जा सकता है। उच्च रक्त चाप में राग भोपाली के विलम्बित गाने सुने और गाये, जैसे 
-चल उड़ जा रे पंछी (भाभी) तथा ज्योति कलश छलके( भाभी की चूड़िया )
-चलो दिलदार चलो चाँद के पार चलो(पाकीज़ा)
-ओम नमः शिवाय (भैरवी) और नील गगन के तले (हमराज)
तथा निम्न रक्तचाप में तीव्र गती के गाने सुने और गाये जैसे;
-ओ नींद ना मुझको आये(पोस्ट बॉक्स न. 909)
-बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना ( जिस देश में गंगा बहती है)
-पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ बालमा  (सेहरा)
ह्रदय रोग-  इस रोग के उपचार में राग दरबारी तथा राग सारंग के शास्त्रीय और इस पर आधारित फ़िल्मी गाने अधिक लाभकारी होते है। जैसे;
-झनक-झनक तोरी बाजे पायलिया(मेरे हुजूर)
-ओ दुनिया के रखवाले सुन दर्द भरे मेरे नाले (बैजू बावरा)
-तोरा मन दर्पण कहलाये (काजल) 
-राधिके तूने बँसुरी चुराई( बेटी-बेटे) और -मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये(मुगले आजम) 
अस्थमा-  अस्थमा रोग में स्वांस की समस्या होती है जिसमें यदि भक्ति पर आधारित गीत सुने तो उपयोगी होगा । राग मालकौंस और राग ललित सुनना और गाना बहुत लाभदायी होता है। कुछ गीत है जैसे; 
-मन तरपत हरी दर्शन को आज(बैजू बावरा )
-तू है मेरा परम देवता इन चरणो की दासी मैं (कल्पना) 
-तू छुपी है कहाँ मैं तड़पता यहाँ (नवरंग)
-रैना बीती जाए श्याम ना आये (अमर प्रेम) और आधा है चन्द्रमा रात आधी (नवरंग)
अनिद्रा- मुझे नींद ना आये मुझे चैन ना आये, ऐसी स्थिति में जब अनिद्रा रोग से आदमी परेशान हो तो उसे राग भैरवी या सोहनी राग पर आधारित गाना या सुनना चाहिए जिससे उसे अनिद्रा से राहत मिलेगी। कुछ गाने उदाहरण के लिए जैसे ;
-दिल का खिलौना हाय टूट गया (गूंज उठी शहनाई) 
-छम छम बाजे रे पायलिया (घूँघट)
-झूमती चली हवा याद आ गया कोई (संगीत सम्राट तानसेन) 
-कुहू-कुहू बोले कोयलिया (स्वर्ण सुंदरी) आदि 
सिरदर्द - ज्यादा काम की थकान या मौसम में बदलाव के कारण यदि सर में दर्द हो रहा हो तो इस समय शांत होकर राग भैरव या राग देस सुने और गाये तब काफी आराम मिलेगा अनावश्यक दवाई खाने की आवश्यकता नहीं होगी । गाने इस प्रकार है;
-मोहे भूल गए साँवरिया (बैजू बावरा)
-राम तेरी गंगा मैली हो गयी (राम तेरी गंगा मैली हो गयी)
-पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई( मेरी सूरत तेरी आँखे)
-जागो मोहन प्यारे, नवयुग का सन्देश है जागो(जागते रहो)
-सोलह बरस की बाली उमर को सलाम (एक दूजे के लिए) आदि
याददाश्त- कभी कभी व्यक्ति की मेमोरी या याददाश्त कमजोर हो जाती है, ऐसा होने पर राग शिवरंजनी पर आधारित गाने सुने और गाये, आपकी याददाश्त बढ़ेगी, इस राग के कुछ गाने इस प्रकार है, 
-मेरे नैना सावन भादों फिर भी मेरा मन प्यासा(महबूबा)
-बहरों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है( सूरज)
-जाने कहाँ गए वो दिन कहते थे तेरी राह में नज़रों को हम बिछायेंगे (मेरा नाम जोकर) 
-लागे ना मोरा जिया सजना (घूँघट)
-खबर मोरी ना लीनी रे , बहुत दिन बीते(संत ज्ञानेश्वर)
-ओ मेरे सनम ओ मेरे सनम दो जिस्म मगर एक जान है हम(संगम) आदि 
निस्तेज या रूखापन - शरीर में कभी कभी खून की कमी से या हवा में आद्रता की कमी या ड्राइनेस से त्वचा का रूखापन बढ़ जाता है जिससे हम चिढचिढे हो जाते है और शरीर निस्तेज लगता है । ऐसे में यदि राग पीलू पर आधारित गानों को ज्यादा गाये या सुने तब इस रोग से छुटकारा मिलता है। गाने कुछ इस प्रकार है;
-मोरे सैया जी उतरेंगे पार हो नदिया धीरे बहो(उड़न खटोला)
-चन्दन का पलना रेशम की डोरी, झूला झूले (शबाब)
-उस पार साजन , इस पार धारे (चोरी चोरी)
-झूले में पवन की आई बहार प्यार कर ले (बैजू बावरा)
कमजोरी या शक्तिहीनता - खून की कमी या किसी बीमारी के कारण कमजोरी महसूस हो सकती है । इस समय आप यदि राग जय-जयवंती पर आधारित गाने सुने तो बेहतर होगा। गाने कुछ इस प्रकार है;
-मनमोहमा बड़े झूठे, हार के भी हार ना माने (सीमा)
-मोहब्बत की राहों में चलना संभल के (उड़न खटोला)
-तुम्हें जो भी देख लेगा किसी का ना हो सकेगा (बीस साल बाद)
-साज हो तुम आवाज हूँ मै (साज और आवाज)
-जिंदगी आज मेरे नाम पे शरमाई(दिलदिया दर्द लिया)
एसिडिटी असामान्य दिनचर्या या काम की भाग-दौड़ में खाने आदि में गड़बड़ी से आज कल यह बीमारी ज्यादातर लोगों में पाई जाती है। इस शिकायत से निजात पाने के लिए निम्न लिखित गाने गाये या सुने । जैसे ;
-हमने तुझसे प्यार किया है जितना, कौन करेगा उतना (दूल्हा-दुल्हन)
-तुम कमसिन हो नादाँ हो नाजुक हो भोली हो ( आई मिलन की बेला)
-तकदीर का फ़साना जाकर किसे सुनाये( सेहरा)
-आयो कहाँ से घनश्याम (बुढ्ढा मिल गया) और रहते थे कभी जिनके दिल में (ममता) आदि

   अतः यह सही है कि पृथ्वी पर विराजमान सुन्दर प्रकृति और उसके बारहमासी मौसम ने मनुष्य को रागों की उत्पत्ति के लिए प्रेरित किया और आज हम सभी संगीत के माध्यम से प्रत्येक मौसम का आनंद गीतों द्वारा उठाते है, जो हमें हर मौसम में कई शारीरिक रोगों से लाभान्वित भी कर रहे है। इसलिए आप सभी प्रतिदिन २०-२५ मिनिट अच्छा संगीत सुने  या गाये या किसी भी तरह से इससे जुड़े रहे, जो हमें अनेक रोगों से चुस्त-दुरुस्त, ऊर्जान्वित और निरोगी बनाये रखने में सदा सहायक होगा ।  
   
    

      

Tuesday, December 16, 2014

क्यों और कहां समाप्त हो रही हमारी मानवता

जैसा हम सभी भलीभांति जानते है, कि हमारा देश अनेक सामाजिक, आर्थिक, सुरक्षा, राजनैतिक से जुडे मामलों तथा महिला सुरक्षा, नशाखोरी और ना जाने कितनी बडी बडी समस्याओं और परिस्थितियों से बुरी तरह से ग्रसित तथा जकडा हुआ है। इन समस्याओं के निराकरण हेतु पहले भी एक मत से अनेक प्रयास होते रहे है। किंतु आज सरकार और सामाजिक संस्थाओं में उच्च पद पर विराजमान कुछ सम्मानित नेता और समाजसेवी लोग इन समस्याओं के सम्पूर्ण निदानों  के कार्य के प्रति अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे है। उसके बाद भी देश की प्रगती में बाधक संकुचित सोच वाले हमारे समाज के कुछ मतलबी लोग और मुख्य रूप से एकता और अखंडता का चोला पहने हमारी राजनैतिक पार्टियों के कुछ पाखंडी स्वार्थी नेता इन जरूरी और मूलभूत समस्याओं से उबरने हेतु किये जा रहे अभूतपूर्व प्रयासों में समर्थन और बढावा ना देते हुये जितनी ज्यादा से ज्यादा हो सके निंदा, आलोचना और अवहेलना कर देश की जनता को भ्रमित कर रहें है। इस संकुचित सोच से लोगों में गलत संदेश जा रहा है, जिससे झूठ और फूट को बढावा देकर हमारी एकता और अखंडता को तोड कर देश को विभाजित रखने का काम लगता है। इसके कारण ही हमारी समस्यायें आज भी वहीं की वहीं है। क्या यही हमारी नैतिकता और मानवता के मूल्य है ?  यदि इस प्रकार की मानवता और मानसिकता रही तब ऐसा महसूस होता है कि आने वाले समय में हमारी समस्याओं के निराकरण के शुरूआती अच्छे प्रयासों से मिलने वाले बडे फायदों से हम वंचित होंगे और सारे प्रयास निरर्थक होकर अधूरे रह जायेंगे। आज आवश्यकता है इन बातों पर पुनर्विचार करके देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाये जिससे देश के ही लोगों का सम्मान और भला होगा । आईये कुछ मुद्दों पर विचार करते है;
भारत स्वच्छ अभियान  = एक पहलू यह है कि स्वस्थ और निरोगी होकर खुशहाल रहने के लिये सभी लोग चाहते है कि हमारा देश स्वच्छ हो, कोई भी नहीं चाहता कि कहीं भी गंदगी दिखे। स्वच्छता के इस कार्य की सार्थक और सकारात्मक पहल के लिये हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक अच्छी सोच के साथ भारत को साफ सुथरा बनाने के लिये अभियान शुरू किया। इसका ज्यादातर लोगों ने स्वागत कर अपना समर्थन दिया और सफाई की शुरूआत भी कर दी है। पिछले दो महिने में ही हम सबने इसका असर भी देखा है, ऐसा पूर्ण विश्वास है कि यदि हम सब गंदगी ना करें तथा सफाई रखने का संकल्प करें तब सबके प्रयास से हम इस अभियान में अवश्य ही सफल होंगे।
एक दूसरा पहलू यह भी है कि समाजसेवा से जुडी यह अच्छी बात हमारे बडे बडे नेताओं के साथ हम में से ही कुछ स्वार्थी बडे लोगों को चुभकर गले नही उतर रही है। ये स्वार्थी नेता और बडे लोग इस महान कार्य में मदद करने के बजाय कई कमीयों को गिना कर इसे झूठा नाटक बता रहे है। नेता तो हमेशा मुफ्त में मिल रही सफाई व्यवस्था में रहते है उन्हें उन लोगों की चिंता कहां है जो गंदगी में अपना जीवनयापन करते है और जिनके वोट के कारण ही वे शानदार जिंदगी जी रहे है। ये नेता सरकार और विशेष रूप से प्रधानमंत्री की आलोचना करते थक नहीं रहे है। ऐसी संज्ञा भी दे रहे है कि प्रधानमंत्री को कुछ काम नही है इसलिये सबको झाडू पकडा दी है। जो प्रधानमंत्री देश और विश्व में हमारे देश के सभी मामलों और गंभीर समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से कई महान कार्य कर रहे हैक्या तब यह बात इन नेताओं से सुनने में अच्छी व शोभायमान लगती है ? क्या यही है इनकी नैतिकता ? शायद इन्हें यह नहीं मालूम कि लोगों की अच्छी भावना को ठेस पहुंचाकर अपनी रही सही इज्जत को भी नष्ट कर रहे हैकहते है न कि विनाश काले विपरीत बुध्धी, इससे उनका हश्र क्या होगा ये भगवान ही जाने। किंतु मुझे लगता है कि अभी भी समय नही गया है, यदी चाहे तो वे भी अपनी गल्तियों को सुधारकर और अपना हाथ आगे बढाकर सबके साथ कंधे से कंधा मिलाकर स्वच्छ भारत अभियान के कार्य में अपना योगदान कर सकते है, जो एक अच्छी मानसिकता और नैतिकता का परिचायक होगा और जिससे निश्चित ही देश की भलाई का कार्य होगा।
महिला सुरक्षा  आये दिन छेड्छाड, बलात्कार, तेज़ाब कांड और हत्या के मामलों से महिलाओं की सुरक्षा  गम्भीर होती जा रही है। निर्भया कांड के पश्चात कई कडे कानून बनाये गयेतथा पुलिस को दोषी बनाकर कई पुलिस प्रशासन में बदलाव किये, किंतु उस पर अमल नहीं होने से अपराधी निर्भय होकर महिलाओं पर अत्याचार कर रहे है। राजनैतिक पार्टियां अपनी रोटियां सेंक रही है, बडे शहरों में कुछ पुरुष और महिला नेता एक दो दिन धरना और प्रदर्शन के साथ अपना विरोध प्रकट करती है और इस विषय पर रोज ही बडी बहस करती है, किंतु इस समस्या का स्थाई हल एक राय से नहीं निकाल पा रही है। इसका हल निकालने और सुरक्षा के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैया शायद इसलिये तो नहीं की यह मामला महिलाओं का है, जिसे समाज में नजर अंदाज किया जा सकता है।   
एक पहलू यह होना चाहिये, अब जरूरत है, कि महिलायें खुद इसका हल निकाले। सबसे पहले शहर की सभी महिला कर्मियों को समाजसेवी महिलाओं और सरकार में विराजमान महिला नेताओं के साथ एक साथ बैठकर एकजुटता दिखाते हुये इस समस्या के लिये ठोस उपाय ढूढने होंगे। उसके बाद उन्हें सरकार व पुलिस प्रशासन के खिलाफ भी साथ ही आक्रामक रूख अपनाते हुये लडाई लडनी होगी और अपने सुरक्षा के लिये जैसे को तैसा वाले तरीके से कुछ त्वरित मांगों को रखकर घोषणा करनी चाहिये कि वे अब किसी भी पार्टी को वोट करने के लिये मतदान में हिस्सा नहीं लेंगी। महिला के बलात्कार में अपराध करने वाले को और  तेज़ाब से किये जा रहे महिलाओं पर हमले के दोषी को पूर्णतया दोषी पाये जाने  पर बीच चौराहे पर पहले कोडों से मारा जाये फिर तुरंत फांसी की सजा का प्रावधान किया जाये। तेजाब कांड वाले अपराधियों को सड़क पर पकड़ कर नंगा करके पुलिस के निर्देशन में तेज़ाब से ही नहलाया जाए ताकि आगे से तेज़ाब फैकने वालों पर कड़ाई से सख्ती हो सके तभी इसका हल होगा।       
दूसरा पहलू यह भी है कि हमारा देश आज भी शिक्षा में कमी के कारण और मानवता जैसे आचरण में काफी पिछडा हुआ है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार में हमारी अश्लिलता की सभी हदें पार करती काल्पनिक फिल्मों का बडा योगदान है सरकार को चाहिये इस प्रकार की फिल्मों के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगाये। शिक्षित और अशिक्षित सभी लोग इस काल्पनिक फिल्मों से प्रेरित होकर ऐसी बडी भूल कर बैठते है जो जीवन में सरल और वास्तविक नहीं होती है। पुलिस प्रसाशन, सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं को चाहिये की वे महिला कर्मियों का विशेष ध्यान रखने के उपाय ढूढें । रात्री शिफ्ट में महिलाओं को कार्य करने के लिए प्रतिबंध किया जाये  जिसके फलस्वरूप महिलाओं की सुरक्षा बढेगी और उन पर होने वाले मामलों में कमी के साथ सुधार होगा। और महिलाओं का भी कर्तव्य बनता है कि इस बुराई से बचने में अपना योगदान दें। महिलाओं की स्वंत्रतता अपनी जगह सही है किंतु ऐसी भी नहीं कि वे देर रात में घरों से बाहर घूमें क्योंकि अभी ऐसा स्वंत्रत माहौल नहीं है हमारे देश का। अत: महिलाये स्वत: सतर्क रहते हुये अपना कार्य करें तब यह संभव है कि उनकी सम्मान सहित सुरक्षा सदैव बनी रहेगी।
नशाखोरी   नशे की लत जैसी समस्या भी हमारे युवा पीढी के जीवन को अंधकार के रास्ते पर ले जा रही है । हमारे ही समाज के बच्चों से लेकर बडे तक नशे की लत के आदी होकर अपने  जीवन को खोखला और बर्बाद कर रहे है। समाज में फैली यह सभी आदतें भी केंसर की तरह एक बीमारी है जिसका कोई स्थाई हल नहीं निकल रहा है।  
इस को देखते हुये प्रधानमंत्री ने अपनी मन की बात के माध्यम से नशे की लत में फंसे युवा लोगों और उनके परिवार को इससे मुक्ति पाने के लिये कुछ सुझाव दिये जो वास्तव में अति उपयोगी और तारीफ के काबिल थे।
उनके इस सुझाव से विरोधी पार्टी के लोग उन्हें बधाई के बजाय उन्हें तुरंत ही इस के लिये दोषी मानकर कट्घरे में खडा करने में नहीं चुके, और अजेंडा बनाने और ना जाने कितने कारण बताकर गलत साबित करना चाह रहे है। इस संकुचित मानसिकता और सोच ने फिर से सवाल उठा दिये। क्या मोदी जी ने लोगों को नशे की लत लगाई जो उनसे ऐसे प्रश्न पुछे जा रहे है । उन्होनें अपनी तरफ से एक मार्गदर्शक के रूप में इस लत को दूर करने के उपाय बताये यह उनका बढप्पन था। आशा है उनके सुझावों पर यदि अमल किया जाये तो यह समस्या हल हो सकती है।
 ऐसी ही ना जाने कितनी बाते और समस्यायें हमारे देश में  रोज ही टीवी के समाचारों के माध्यम से सुनने और देखने को मिलती है जिन पर रोज ही बडी बहसें होती है । पक्ष और विपक्ष आपस में ही उलझ कर रह जाते है और बहस को राजनीति और धर्म सम्प्रदाय से जोड्कर समाप्त कर देते है । उसका हल नहीं निकलता और मुद्दा वहींका वहीं रह जाता है इससे स्पष्ट है, कहीं न कहीं हमारी मानवता और नैतिकता समाप्त हो रही है ।                  





Wednesday, December 10, 2014

स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों हेतु उपयोगी बातें

 हमारे देश भारत के लिये 10 दिसंबर 2014 का दिन एक और सम्मान लेकर आया जब एक सामाजिक
कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी को उनके विशिष्ट कार्य के लिये शांति के नोबेल पुरुस्कार से नवाजा गया।  श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने जबरन बाल मजदूरी कराये जा रहे बच्चों, अनाथ बच्चों, भागे या भगाये गये बच्चों को उनके माता पिता से मिलवाने का संकल्प लिया था और अपने जीवन को इस कार्य के प्रति समर्पित कर दिया । ऊन्होंने बच्चों के जीवन को पुन: सवांरने के इस महान कार्य में अनेक कठिनाईयों का सामना भी किया, यहां तक की उनको मारने की कोशिश भी की गई। उसके बाद भी वे बिना किसी भय के लगातार इस कार्य में जी जान से जुटे रहे। इसका आज परिणाम यह हुआ कि आज लाखों बच्चों का जीवन बच गया और उन बच्चों के चेहरे की मुस्कान और अधिकार उन्हें वापस मिल गये । इस ईनाम के लिए श्री कैलाश सत्यार्थी जी को अनेक बधाईयाँ जिसके वे पूरे हकदार है।    

इन बातों ने मुझे भी आज कुछ बच्चों के लिये लिखने का विचार आया। मुझे लगा कि हमारे देश में अनेक समस्यायें है जैसे; अशिक्षा, बेरोजगारी, भूखमरी, रोज आये दिन होते बलात्कार और हत्यायें आदि आदि। इन समस्याओं का हल ढूढना भी बहुत बडा  काम है। सरकारें इस कार्य के लिये अनेक योजनाओं के माध्यम से प्रयत्न करती है फिर भी यह कम होने का नाम नहीं लेती है । इसमें हमारे देश में हो रहा भ्रष्टाचार भी  एक बडा कारण है । तो क्या इसका कोई भी हल नहीं है ?

मुझे लगता है कि क्यों  ना हम ही इसका हल बने । माध्यम होंगे हमारे समाज और परिवारों के ही बच्चे। यदि हम बच्चों को एक अच्छा और शिक्षित इंसान बनाते है तो यह हमारे देश की मजबूत नींव बनाने में  अच्छा योगदान करेगा तथा जो हमारे देश की कई बड़ी समस्याओं को जड़ से समाप्त करने में अहम भूमिका अदा कर सकता है।  आइये अब इस कार्य के लिए कुछ जरूरी बातों पर गौर करते है;                                    
 हमारे  देश,समाज और परिवार की नींव को मजबूती प्रदान करने वाले हमारे प्यारे बच्चों से उसके जन्म के बाद से ही सभी के मन में स्वाभाविक रूप से अनेक बातों  और आशाओं का समुंदर हिलोरें लेने लगता  है, जैसे; मेरा बच्चा भविष्य में क्या बनेगा, क्या करेगा, उसका जीवन कैसे खुशहाल व उज्जवल होगा तथा वह हमारे देश, समाज और परिवार के प्रति अपना कर्तव्य कैसे निभाएगा आदि आदि । बच्चों के भविष्य के बारे में सोच और चिंतन से सभी को एक मार्ग मिलता है और वे इस कार्य को किस प्रकार से करें उसके लिए प्रयत्नशील होने लगते है। उस समय बच्चों के बेहतरीन लालन-पालन और शिक्षा की व्यवस्था सबका प्राथमिक कार्य हो जाता है तथा वे बच्चों में अच्छे संस्कार, उनकी अच्छी शिक्षा व सेहत आदि के कार्य में व्यस्त हो जाते है । हमारे देश, समाज और परिवारों के हर वर्ग को ऐसे जन्मजात संस्कार मिले है, जिसमें हर माता-पिता अपने कर्तव्य को निभाते हुए बच्चों के भविष्य को सवांरने और सजाने के लिए अपने  अपने सामर्थ्य और शक्ति से पूर्ण करने का भरपूर प्रयत्न करते है, तब जाकर तारे की तरह चमकता एक सम्पूर्ण और कामयाब इंसान बनता है ।जिस पर प्रत्येक माता-पिता को गर्व है, जिसके अनेक अच्छे उदाहरण हर परिवार में आसानी से देखने और सुनने को मिल जाते है । यदि माता-पिता का यह सपना पूरा हो जाए तब उस पल उनसे ज्यादा खुशनसीब इंसान इस दुनिया में और कोई नहीं होता, यह हम सभी समझ और सोच सकते है ।

क्या हो बच्चों के कर्तव्य -  हमने देखा कि कैसे हर माता-पिता,  बच्चों के बचपन से ही उनके लालन-पालन के लिए कितनी कड़ी मेहनत करते है । तब वे भी अपनी इस परीक्षा के लिए एक दिन इस इन्तजार में रहते है, कि उनके इस कार्य में वे कितने सफल हुए । आपको यह  भी मालूम होना चाहिए कि उनकी इस परीक्षा और मेहनत के  परिणाम में मात्र उनके बच्चे की ही सफलता निहित होती है ।

अब जब आप सभी बच्चे अपने पेरेंट्स द्वारा सिखायी बातों और उनके दिए गए संस्कारों के साथ बड़े हो रहे  है और एक विद्यार्थी  की तरह  स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई के अतिरिक्त  अच्छा खाना खाने, अच्छे कपड़ें पहनने, खेलकूद करने और दोस्त बनाने में  मजे से अपने माता-पिता के साथ रहकर  एक बड़े कामयाब इंसान बनने की कोशिशों में दिन-रात लगे  है, तब आपको भी कुछ ऐसे  अच्छे और छोटे-छोटे जरूरी काम करने होंगे, जो आने वाले समय में और आज के प्रतियोगिता के कठिन दौर में कामयाबी हासिल करने के लिए आपके लिए  करना नितांत आवश्यक हो गए है । आइये कुछ बातों पर विचार करें जिस पर सभी को अमल में लाकर अपना कार्य करना चाहिए ;
1. सबसे पहले अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करें। एक निश्चित टाईम टेबल बनाए जिसमें  सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक का एक निश्चित समय निर्धारित करें  और इसका पालन नियमित करे। आप किसी भी कक्षा के विद्यार्थी हो अपने कार्य पढ़ाई के प्रति सदैव सचेत रहे । अपने कॉपी और किताबों का पढ़ाई करते हुए विशेष ख्याल रखें,  उनकी पूजा करें क्योंकि वही माँ सरस्वती है जो आप के लिए ज्ञान का खजाना है।    
2 . सुबह जल्दी सोकर जागना एक सबसे अच्छी आदत है इससे आप सदैव ऊर्जान्वितऔर स्फूर्तिवान बने
 रहते है । सुबह स्कूल जाने से पहले थोड़ी हल्की  कसरत करें ताकि आपके  शरीर के सभी अंग तरोताजा होकर दिन भर काम करने, खेलने आदि के लिए तैयार रहे ।
3. रात को ही स्कूल की ड्रेस आदि तैयार रखे जिससे सुबह कोई भी परेशानी ना हो।जिससे समय की बचत होगी और आप फटाफट तैयार होकर समय पर स्कूल, कॉलेज के लिए पहुँच सकेंगे । स्कूल/कॉलेज में एक सुव्यवस्थित ड्रेस के साथ रहने से आपके शिक्षक हमेशा आपसे खुश रहेंगे और आप हमेशा स्मार्ट अनुभव करेंगे जो आपको पढ़ाई और अन्य कार्यकलापों के काम में दिलचस्पी बढ़ाता रहेगा ।  
4. अपने  होमवर्क को रोज पूरा करें और जो रोज पढ़ाया जा रहा है उसे घर पर रिवाइज करें । जिससे आप स्कूल/कालेज में कभी पीछे नहीं रहोगे और इस आदत से आपको किसी ट्यूशन की जरूरत नहीं होगी  और आप हमेशा अच्छे नंबरों से पास हो सकोगे। छुट्टी के दिन या परीक्षा के समय सुबह 5  बजे उठकर पढ़ाई ज्यादा फायदेमंद होती है अत: जल्दी सोये और  जल्दी सोकर उठकर याद करें।  
5.  स्कूल/कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई के अलावा एक शौक के रूप में रोज अखबार और अच्छी अपनी मनपसंद की किताबों को भी पढ़ना जरूरी है जिससे आपके सामान्य ज्ञान में वृद्धि होगी ।  इसके अलावा रोज लगभग एक घंटा कोई भी खेल खेंले जिससे आप पूरी तरह से शारीरिक तौर से फिट रहेंगे। ये  अच्छी आदतें या शौक आपको भविष्य में किसी भी इंटरव्यू या संवाद में सफल बनाने  में काम आएगी। 
6. पढ़ाई  के बाद मिले समय में घर के छोटे-छोटे कामों में पेरेंट्स की मदद करें जैसे; खाना खाने के बाद बर्तन सिंक में खुद रखें, खाना बनाने की कला को अपनी मम्मी के निर्देशन में सीखें, अपने कपड़े धोये, अपने जूते पोलिश करें, अपने कपडे  प्रेस करें उन्हें करीने से रखें आदि आदि । ये सभी  काम आपको आपके सर्विस या  हॉस्टल और अन्य जगहों पर बहुत काम आएंगे जब आप अकेले होंगे ।
7. यदि हो सकें तो कोई एक संगीत की विधिवत कला जरूर सीखें जैसे; गायन, वादन, नृत्य। ड्राइंग और पेंटिंग को भी सीखें जो आपके सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास में स्कूल और कॉलेज में काफी ज्यादा मददगार होगा । इन  कलाओं से युक्त व्यक्ति अच्छे संस्कारो सीखता है और दूसरो के साथ खुद अपना मनोरंजन कर सकता है, अच्छा संगीत आपको शांत रखने और आपका कार्य के प्रति कंसंट्रेशन बढ़ाता है ।  इस कला के दम पर आप  अपने स्कूल और कॉलेज या कार्य क्षेत्र में सांस्कृतिक  कार्यक्रमों के माध्यम से ज्यादा पॉपुलर हो सकते है ।
8. आज के वैज्ञानिक युग में कंप्यूटर और मोबाइल के बिना काम करना आसान नहीं है फिर भी यदि बच्चे इसका उपयोग कम से कम करें तो अच्छा होगा, मात्र पढ़ाई के आवश्यक काम उस पर करें । वाट्स ऎप और फेसबुक पर केवल अच्छे दोस्त बनाये और  माता- मिले संस्कारों को ध्यान में रखते हुए सभी को आदर और सम्मान दे।  क्योंकि आज के समय में यह कम ही बच्चों में दिखाई  देता है । यदि आप कंप्यूटर पर कार्य करते है तब रोज व्यायाम जरूर करें, कार्य के बीच बीच में १० मिनट का विराम दे ताकि आँखे ख़राब होने का चांस कम हो ।
9.  अपने घर पर या आस-पड़ोस में यदि परीक्षा के  दिनों में लॉउडस्पीकर या अन्य शोर शराबा हो तो तुरंत इसका विरोध करे क्योंकि यह आपका हक़ है । आप भी अपने घर पर शादी या अन्य कार्य में साउंड सिस्टम का उपयोग कम आवाज में करें ताकि आप की वजह से भी किसी अन्य को पढ़ाई में बाधा  ना हो । 

यदि आपको अपना जीवन खुशहाल बनाना है और आपके पेरेंट्स के सपनो को पूरा करना है, तब आज से ही  उपरोक्त बताई बातो पर अमल करें जो निश्चित ही आपको एक अच्छा इंसान बनाने में मदद करेगा । जब सभी पढ़े-लिखे अच्छे इंसान होंगे तो शायद आज की रोज मुँह उठाती समस्याएं अपने आप ही समाप्त हो जाएगी । तो आइये अपने देश के लिए आप भी श्री कैलाश सत्यार्थी जैसे बन कर देश को विभिन्न समस्याओं से निजात दिलाने का प्रयास करें ।  इसलिए जमकर पूरे जोश के साथ अपने कार्य  के प्रति समर्पित रहें जो आप के लिए महत्वपूर्ण है । अंत में सभी बच्चों को आने वाले परीक्षा और प्रतियोगिताओं  के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूँ और  ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप अपने हर कार्य में सफल हो तथा आपका भविष्य  उज्जवल और जीवन मंगलमय हो ।    

       


   
       

Monday, December 8, 2014

फिल्मों से दूषित होती भारतीय संस्कृति

फिल्मों  से दूषित होती भारतीय संस्कृति
आज पुनः देश एक और बलात्कार के मामले से निश्चित दुखी है, उबर टैक्सी में हुए निर्दोष लड़की के बलात्कार के लिए कौन दोषी है इस पर दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों, अखबारों आदि में जोरदार विरोध के साथ चर्चा है।  मुझे लगता है,भारतीय संस्कृति के बिगड़ते स्वरुप में आज की फिल्मो ने अपना बहुत बड़ा योगदान दिया है
निर्भया कांड के समय भी मुझे इस बीमारी की जड़ केवल भारतीय फ़िल्में ही लगी थी और आज भी वही कारण  है । इस सब अपराधों के लिए मात्र सरकारों या पुलिस पर दोष लगाना जायज नहीं है। हमारे देश का
सरकारी तंत्र  और उसकी कड़ी कानूनी व्यवस्था  ऐसी बनाई गयी है कि समाज और देश में एक सदभावपूर्ण और शांति का वातावरण बने जो देश के सर्व विकास में उपयोगी हो । सरकार और उसका तंत्र अपना कार्य भलीभांति करता है किन्तु जब लोग ही अशिक्षित हो और जहाँ शिष्टाचार तथा नैतिक मूल्यों की कमी हो वहां कोई भी सरकारी तंत्र  हो कभी अच्छा वातावरण निर्मित नहीं हो सकता । लोग क़ानून का पालन नहीं करते  कारण उन्हें उसके लिए कठोर दंड का प्रावधान नहीं है ।

इस कुरीति को बढ़ावा देने  के लिए जिम्मेदार है हमारा मिडिया, सच्चाई और वास्तविकता से दूर फ़िल्में और प्रत्येक चैनल पर दिखाए जा रहे कंडोम, बॉडी स्प्रे  या अन्य कपड़ो से लेकर कार तक के विज्ञापनों में अश्लील दृश्य जो सेक्स को ज्यादा दिखाकर अपने सामान को बेचना चाहते है । इससे हमारे समाज के सभी आयु के नर नारी बुरी तरह से प्रभावित होकर मानसिक रूप से बीमार हो रहे है । आज इस दौड़ती भागती जिंदगी में लोग स्वार्थी होकर अपना कार्य करे है, किसी को किसी से कोई मतलब नहीं, कोई मानवता नहीं रह गयी है और जो कभी कभी दिखती है वह भी दिखावा ही होती है । 
फिल्मो में दिखाए जा रहे सेक्स अपील के दृश्यों ,उनके फिल्मांकन ,संगीत,तथा निर्देशन ने आधुनिकता के नाम पर भारतीय संस्कृति के स्वरुप को बदल कर रख दिया है। जनता को सेक्स के नाम पर अपनी फिल्मो को दिखाकर एवं पश्चिमी सभ्यता को अपनाने कि बात कह कर मात्र पैसे का खेल खेला जा रहा है। सामाजिक जीवन से जुडी अच्छी कहानियों से दूर होकर तथा पैसा बनाने की लालसा ने फिल्मों से जुड़े स्वार्थी लोगों ने भारत देश के समाज की केवल बुराईयों को ज्यादा दिखाकर तथा अश्लीलता वाले दृश्यों के बल पर शिक्षित व अशिक्षित लोगों में इन बुराइयों की प्रवत्ती को बढ़ाने में मदद की है जिससे लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहें है। इसका कारण है कि आज आये दिन बलात्कार, हत्या, मारपीट, चोरी डकैती जैसी घटनाएं हो रही है । निर्भया के बाद  एक  के बाद एक कई बलात्कार के मामले बढ़ते ही जा रहे है । इस प्रकार के अपराधों को दूर करने या इसमें कमी लाने  के लिए कोई भी फिल्म का निर्माण नहीं किया गया है ताकि लोग कुछ उसे देखकर मानसिक बीमारी से निजात पा सके।
आज आम आदमी हमारे देश की अन्य बड़ी समस्याओं पर  नजर नहीं रखता वह काम केवल  सरकार का  है मानकर चलता है । आतंकवादी हमलों से कोई परेशान नहीं होता उसमे शहीद हो रहे सुरक्षा कर्मियों के लिए किसी को कोई भी दुख नहीं होता। कारण देश भक्ति में कमी  आना है सभी अपने आप को ज्यादा ही आज़ाद महसूस कर रहा है।
हमारे देश की संस्कृति में महिलाओं के लिए विशेष जरूरत होती है की वे अपनी मर्यादा और सम्मान  के लिए सदैव सतर्क हो । उनको पूर्ण आज़ादी हो किन्तु इसका मतलबी यह नहीं कि वे मर्दों जैसे  रात में भी निडर होकर रहे। हमारे देश की मानसिकता में अभी इतना ज्यादा बदलाव नहीं आया है कि महिलाएं स्वतंत्र होकर कुछ भी करें । आवश्यकता है कि अपने आप को सुरक्षित कैसे रखकर काम करें उसके लिए जरूरी है कि भारतीय समाज की वेशभूषा का उपयोग हो, फिल्मों में दिखाए जा रही अवास्तविक बातों को ना अपनाये। आदमी हो या महिला सभी  की सुरक्षा के लिए कई क़ानून है किंतु हमारा भी दायित्व है की हम कैसे इस समाज में अपने ज्ञान,संस्कार, शिक्षा, शिष्टाचार व नैतिक मूल्यों का परिचय दे और उसके प्रति खरे उतरे । शायद तभी यह संभव होगा कि हमारी देश की संस्कृति बच पाये।         
      

सफलता का मूल मंत्र है - समय का सदुपयोग

सफलता का मूल मंत्र है - समय का सदुपयोग  
(राजभाषा विभाग,  भारत सरकार, गृह मंत्रालय से २०१४ में पुरुस्कृत तथा राष्ट्रपति के कर कमलों से सम्मानित लेख)

                   सम्पूर्ण विश्व में ऐसे अनेक महापुरुष, विद्वान् दार्शनिक, विचारक, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, अभिनेता, और सामाजिक कार्यकर्त्ता आदि  सफल लोगों की सूची हमें सहज ही मिल जाएगी तथा जिनका नाम हमारी जुबान पर सदैव रहता है, जिन्होंने अपने जीवन में समय के महत्त्व को समझा और उसका सही उपयोग करके ऐसे, अपने-अपने क्षेत्रों में, अनेक कार्य किये जिससे उन्हें महान कार्यों को करने  की प्रेरणा मिली और विश्व में अपना नाम अर्जित कर महान सफलताए प्राप्त की । हमारे समाज व आस-पास में भी ऐसे ही अनेक लोग मिल जायेंगे जिन्होंने जीवन में समय के रहस्य को पहचाना और सही दिशा में अपनी आतंरिक उर्जा को समय के साथ जोड़कर जीवन में सफलताये प्राप्त कर बड़े-बड़े पदों पर अपना स्थान बनाया और देश के लिए महान कार्य किये।    
                  

                     आज यह ज़रूरी हो गया  है, कि हम सभी को भी अपने जीवन काल में समय की महत्ता को समझाना होगा ताकि हम आने वाली हमारी भावी पीढ़ी को सही मार्गदर्शन दे सकें । अपने जीवन की नई शुरुआत का सही समय है, जिसमें हम अपनी गलतियों में सुधार करके, नियमित सही व् अनुशासित दिनचर्या व्  नई उर्जा और उमंग के साथ अपने व्यक्तित्व को निखारने, अपनी शिक्षा बढाने साथ ही अपने कैरिएर को मजबूत बनाने में अहम् भूमिका निभाए, जो हम सब की सफलता का मूल-मंत्र होगा।
                    
                     आइये, क्यों न हम सभी आज ही यह संकल्प करें, कि हम अपने मूल्यवान जीवनकाल में समय का सदुपयोग करेंगे और सफलता की चरम सीमा को पाने का प्रयत्न करेंगे जिससे हमारे साथ हमारी आने वाली भावी पीढ़ी, सम्पूर्ण समाज व् देश के लिए कुछ ऐसे कार्यो को करने की प्रेरणा और ताकत मिले, जिससे हम अपने परिवार, समाज और देश की भलाई में महत्वपूर्ण योगदान दे सके।  सफलता पाने के लिए समय के सही उपयोग का बहुत बड़ा योगदान होता है, यह हम सभी जानते है। फिर भी आइये कुछ विशेष बातों को अपने दैनिक दिनचर्या में अपनाने या ढालने की कोशिश करते है  जो हमें समय के सही उपयोग में सहायक हो सकती है।  
·         अगर आप सफल होना चाहते हैं, तो आपको सफलता के घिसे-पिटे रास्तों पर चलने के बजाय नये रास्ते बनाना चाहिये। ~ जान. डी. राकफेलर

समय का पूर्ण उपयोग-   कुछ बेहतर पाने के लिए हमें समय को लेकर अधिक सचेत व सावधान रहना होगा।  यह भी ध्यान रखना होगा कि हम समय को किस प्रकार और कैसे व्यतीत करते है। समय का उचित संयोजन/प्रबंधन करने के लिए यह भी तय करना होगा कि कि हम ऐसे कार्य करें जो हमारे जीवन में अच्छे मूल्यों व् आदर्शों की स्थापना करे। इसलिये यह आवश्यक है, कि काम के दौरान सभी छोटी-छोटी बातों का ख्याल करें जो हमारे लिए लाभकारी हो। समय का सही उपयोग तभी संभव है, जब हम अनावश्यक बातों को कभी भी प्राथमिकता ना दे।  
·         हालांकि कोई भी व्यक्ति अतीत में जाकर नई शुरुआत नहीं कर सकता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अभी शुरुआत कर सकता है और एक नया अंत प्राप्त कर सकता है। ~ कार्ल बार्ड

सही कार्य योजना, सृजनात्मकता एवं तत्परता   - यदि हमारे समक्ष कार्य की योजना का सही प्रारूप जैसे किसी भी कार्य को करने में लगने वाली ज़रूरी सामग्रियों ,प्रक्रियाओ व उस पर लगने वाले समय की निश्चित रुपरेखा आदि हो तब कार्य को प्रारंभ से अंत तक करने में सरलता के साथ संपन्न करने की आत्म-संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा हम अपने खाली समय को हम कहाँ और कैसे बिताये, किन विषयों पर वार्तालाप करें तथा किस प्रकार के कार्यक्रमों और सामाजिक सम्मेलनों में जाये, इन सभी बातों के प्रति भी हमें सतर्क रहना चाहिए और हमें यह भी खोजना चाहिए कि हमारे अन्दर छुपी सृजनात्मकता और योजना को हम और कैसे अधिक प्रभावशाली बनाने में सफल हो। कार्यों को संपादित करने की तत्परता भी एक विशेष व मुख्य कारक होता है। इस प्रचलित तथा प्रासंगिक दोहे से हम सभी अनभिज्ञ नहीं है कि "काल करे सो आज कर, आज करे सो अब, पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब" अर्थात कार्य को कल के लिए ना  टालें उसे आज ही कर ले, जिसके अनेक फायदे होते है जैसे समय की उपयोगिता का ध्यान रखकर कार्य को पूर्ण करने की ख़ुशी  व कार्य को टालने से होने वाले अनावश्यक मनोवैज्ञानिक तनाव से बचाव         
·         बुद्धिमान व्यक्ति उस समय सीखते हैं जब वे ऐसा कर सकते हैं, लेकिन मूर्ख व्यक्ति उस समय सीखते हैं जब उनके लिए ऐसा करना बहुत जरुरी हो जाता है। ~ आर्थर वैलेस्ले

अनावश्यक दखल से बचे, करें अपने मन की  - एक कहावत है, कि "Too Many Cooks Spoil The Foodयानी बहुत सारे रसोइये मिलकर जब एक ही व्यंजन बनाते  है तब व्यंजन बेस्वाद हो जाता है, अतः बहुत जरुरी है,कि अपने लक्ष्य के लिए आपने अपने दिल और दिमाग में जो कल्पना बनाई हुई है उसमें यदि अनावश्यक दखल होगा तब कार्य की स्वाभिकता खो जाएगी। इसलिए सबकी राय सुने और अपने विवेक से सही और गलत को  निर्धारित करे तथा किसी अन्य के कार्य में, जो आप के कार्य या स्वभाव के अनुरूप न हो में अनावश्यक दखल ना दे। इससे समय की बचत के साथ अच्छी बातों को ग्रहण करके अपनी मंजिल तक पहुँचने में मदद मिल सकेगी।  
·         जब तक किसी व्यक्ति द्वारा अपनी संभावनाओं से अधिक कार्य नहीं किया जाता है, तब तक उस व्यक्ति द्वारा वह सब कुछ नहीं किया जा सकेगा जो वह कर सकता है। ~ हेनरी ड्रम्मन्ड

वर्तमान को पहचाने और रणनीति पर रखे विश्वास  - अपनी  दिनचर्या को सैदव निर्धारित करके रखें ताकि अपने अंदर निहित उर्जा, दक्षता व समय का उपयोग सही दिशा में हो सके। वर्तमान ही जीवन की सच्चाई है, जिसके कारण से ही हम सभी पहचाने जाते है। कई बार हम कार्य का प्रारम्भ तो बड़े जोर-शोर से करते है किन्तु धीरे-धीरे मंजिल के करीब पहुचते समय उत्साह में कमी का अहसास करने लगते है, अतः यह जरुरी होता है कि कार्य को अपने दृढ़-संकल्प से लगन के साथ उसके अंजाम तक ले जाये जिस उत्साह से उसे प्रारंभ किया था। कभी-कभी जीवन में ऐसे भी पल आते है, जब हमें यह अहसास होता है, कि हम अपना समय बेकार कर रहे है या कर चुके है। तब तक मूल्यवान समय तो व्यतीत हो चुका होता है, जो फिर लौटकर नहीं आता है। इसलिए यह आवश्यक है, कि अपने कार्य करने की जो भी रणनीति बनाई हो उस पर पूर्ण आत्मविश्वास के साथ बिना किसी संदेह के अमल करते रहना चाहिए। यह भी ध्यान रखने योग्य है, कि हम भविष्य के बारे में न सोचे ना ही चिंतित हो, क्योकि चिंताओ के सहारे जीवन में कभी भी कुछ हासिल नहीं होता है। अतः वर्तमान को याद रख के अपने कर्मो को सही रणनीति से निष्पादित करने से ही हमारा जीवन सफल हो सकता है।
·         किसी के गुणों की प्रशंसा करने में, अपना समय मत बरबाद मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो। ~ कार्ल मार्क्‍स

कदम, मंजिल की ओर रखे तथा स्वयं का मूल्यांकन करें  - अर्जुन ने महाभारत में विजय प्राप्त करने के लिए, अपने लक्ष्य को भेदने के लिए मछली की एक आँख पर निशाना साधने का अभ्यास किया और उसमे सफलता पाई। वैसे ही हमें कार्यो में सफलता पाने के लिए अपने लक्ष्य को निर्धारित करना होगा व जो हमेशा लक्ष्य की ओर जाता प्रतीत होना चाहिए और जिससे हमें हमारे उद्देश्य को प्राप्त करने में मनोवांछित सफलता  मिल सके। मंजिल तक पहुँचने में संघर्ष का परिणाम आपको सदैव मानसिक रूप से ताक़तवर बनाता है जो जीवन के कठिन समय में हमें सदा मानसिक शक्ति प्रदान करता है। अतः अपना पूरा ध्यान केन्द्रित करके आगे बढने का तरीका ढूंढना होगा जो किसी जटिल समस्या को सुलझाने में प्रभावशाली हो सके।
·         सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आप चौबीस घण्टे मे कितने प्रयोग कर पाते है। ~ एडिशन
                             
            एक निश्चित समय के उपरांत हमें अपना भी मूल्यांकन और समीक्षा  करना आना चाहिए, जिससे हमें हमारी क्षमता, कार्य कुशलता, दक्षता एवं दिशा का बोध हो सके।  इसे परखने और समीक्षा के लिए हमें लगातार यह देखना होगा, कि क्या हम सही दिशा में वर्तमान में विश्वास के साथ अपने लक्ष्य, कार्य शैली और रणनीति आदि पर अमल कर रहे है या नहीं।  इस प्रकार के खुद के मूल्यांकन व समीक्षा से हमें हमारी व्यक्तिगत सम्पूर्ण क्षमताओ की परख हो जाती है। जिससे हम हमारी कमजोरियों को दूर करने का प्रयत्न कर सकते है।
·         एक बार किसी कार्य को करने का लक्ष्य निर्धारित कर लेने के बाद, इसे हर कीमत तथा कठिनाई की लागत पर पूरा करें. किसी कठिन कार्य को करने से उत्पन्न आत्म विश्वास अभूतपूर्व होता है। ~ थामस ए. बेन्नेट

स्पष्ट व् सुखद सोच रखे क्योंकि बीता समय नहीं आता दुबारा  - निर्धारित उद्देश्य हेतु यदि हम बिना किसी स्पष्ट विचार से कार्य करते है तब यह आशंका अधिक रहती है, कि हम अपना अधिकांश उपयोगी समय भूल जाते है या ख़राब कर देते है। यह भी हो जाता है, कि हम छोटी-छोटी मुख्य बातो को भी भूल जाते है जो हमें अपने उद्देश्य के मार्ग से भटका देती है। अतः सही और स्पष्ट सोच के साथ अपने कार्य का निष्पादन करना चाहिए जिससे समय की उपयोगिता हो सके और हम मार्ग से भटके नहीं । सही सोच से किये गये कार्यो का हमें सुखद अहसास भी होना चाहिए जो कार्य करने में अतिरिक्त उर्जा व् उमंग भर देती है । मार्ग के बीच में पहुँच कर योजना ना बनाये बल्कि समय-समय पर कार्य की समीक्षा करे और उन्हें लागू करते रहे तब जाकर लक्ष्य की प्राप्ति स्पष्ट व् सुखद होगी । 
·         अधिकांश बड़े लक्ष्य हासिल न हो पाने का कारण यह हैं कि हम छोटी चाजों को पहले करने मे अपना समय बिता देते हैं। ~ रार्बट जे. मैकेन
                         
             यदि एक पेशेवर नजरिये से हमारा विकास होगा तब हम भी एक कुशल व्यक्तित्व के धनी कहलायेंगे।  इसे हासिल करने के लिए पूरा ध्यान केन्द्रित करना आना चाहिए, समय का दुरुपयोग न हो इसका भी पूर्ण ख्याल रखना होगा। साथ ही गलत कार्यो/बातो को नकारना होगा जो समय को नष्ट कर देता है, तब जाकर पेशेवर नजरिया प्राप्त हो सकता है। अपने अन्दर के गुस्से को भी काबू में रखना होगा जो समय के साथ आपके विवेक, बुद्धि के लिए विनाशकारी हो सकता है। जब लक्ष्य प्राप्ति में बाधा आये तो उसे उसे कुछ समय के लिए त्याग दे और अन्य अपनी क्षमता व दक्षता से  बेहतर तरीके से उस कार्य को करने का उपाय खोजे। अपने अंदर जिम्मेदारी और उत्तरदायित्व की भावना का विकास करने से अपने गुस्से पर नियंत्रण रखा जा सकता है। जब आप गुस्सा होते है तब आप भी खुश नहीं रहते और ना ही दुसरे आप से प्रसन्न होते है बल्कि एक गलत सन्देश आपके व्यक्तित्व पर खड़ा हो जाता है।
·         ग़लतियों से न सीखना ही एकमात्र ग़लती होती है। ~ रॉबर्ट फ्रिप्प
                      
              जैसा हमने देखा कि उपरोक्त आवश्यक सभी बातों का यदि हम अपने दैनिक जीवन में समावेश करे, तब हम समय के सही उपयोग के बारे में जान सकेंगें जो हमें हमारे जीवन व व्यक्तित्व विकास के साथ सभी प्रकार की लक्ष्य प्राप्ति की ओर ले जाने में सहायक होगा । अतः जीवन में एक सफलतम व्यक्ति बनने के लिए समय की महत्ता को पहचानना अति-आवश्यक है, जो हमें ही नहीं अपितु आने वाली भावी पीढ़ी को सही मार्ग-दर्शन देने  में सहायक होगा। जो अपने देश को एक मजबूत आधार प्रदान करेगा और अच्छा कार्य करने में अमुल्य योगदान होगा ।  
·         चुनौतियों को स्वीकार करें, ताकि आप विजय के हर्ष का आनन्द महसूस कर सकें। ~ जनरल जार्ज एस. पैट्टोन
·         सबसे बुद्धिमान व्यक्ति के लिए अभी भी कुछ सीखना बाकी होता है। ~ जॉर्ज संटायाना