Monday, December 8, 2014

महिला सशक्तिकरण और महिला दिवस

महिला  सशक्तिकरण  और  महिला दिवस 
               सम्पूर्ण विश्व भर में 8 मार्च को महिला दिवस मनाया जाता है इस दिन को महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान तथा उनकी समाज में सशक्तिकरण दशा की बाते अलग अलग ढंगो से विभिन्न अखबारों, मिडिया आदि में प्रचारित प्रसारित करके बहस का हिस्सा मात्र बनाकर मनाया जाता है आज हमारे देश की शहरी और देहात की महिलाओ पर हो रहे अत्याचारों और शोषण आदि को कड़ाई से रोकने लिए कानून या अधिनियमों को बनाकर क्या महिला सशक्तिकरण हो पायेगा ?  इस विषय पर सार्थक बहस के साथ निदान की ज़रूरत और महत्व को बल दिया जाना अब जरुरी है सरकार महिलाओं को हक तो दे सकती है, पर जब तक उनके अपनों की सोच में परिवर्तन ना आये या वे खुद अपने अंदर परिवर्तन लायें तब तक उन का चौखट से चौपाल तक आने का सफर आसान नहीं होगा | जब समाज में सामाजिक, पारिवारिक और वैचारिक बदलाव आयेगातभी शायद औरतों की समस्यायें कुछ कम हो पायेगी क्योंकि आज सिर्फ पुरुष ही दोषी नहीं हैं वरन महिलायें भी दोषी हैं | एक बहू आज भी अपने ही घर में अपनी सास-ननंद से प्रताडित होती नजर आती है आज बहू,बेटी,बहन अपने ही घरों में सुरक्षित नहीं हैं  | एक और पहलू यह भी है, कि हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की बात करने से पहले यह जानना होगा कि क्या वास्तव में महिलायें अशक्त हैं ? कहीं ऐसा तो नहीं कि अज्ञानतावश या निहित स्वार्थों के तहत कोई षडयंत्र तो नहीं, महिलाओं को अशक्त बनाये जाने का या उसे अशक्त बताने का   मानव सभ्यता जब से पृथ्वी पर पनपने लगी तभी से बलशाली को ही अधिकारके सिध्धांत को अपनाते हुए पुरुषवर्ग ने अपने शारीरिक सामर्थ्य का फ़यदा उठाते हुऐ उस पर अपना आधिपत्य जमाना शुरु कर दिया और उसे दोयम दर्जे पर ला खडा किया | धीरे-धीरे नारी ने उसे अपना नसीब नियति समझ, स्वीकार कर लिया | किन्तु आज की महती आवश्यकता यह है कि नारी को अपने अस्तित्व की रक्षा हेतू आदमियों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चलना होगा ताकि वे भी गर्व से समाज में अपना स्थान बना सकें, जो देश की उत्तरोत्तर प्रगति में एक विश्वनीय सहायक की भूमिका अदा कर सकें  
               आज भारत में भी महिला दिवस को विशेष महत्व के साथ मनाकर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जोरदार ढंग से आंदोलन रूपी अनेक आवाजें उठ रही है वैदिक काल में हमारे देश में जिस नारी को पूज्यनीय माना जाता था , उसे पुरुष समान इज्जत दी जाती थी, मातृ देवो भव : कहा जाता था किन्तु महिलाओं के प्रति भेदभाव और शोषण की नीतियों का सदियों से ही बोलबाला रहा है | इतना जरुर कह सकते हैं कि मापदंड तरीके भिन्न-भिन्न जरुर रहे हैं | सीता से लेकर द्रौपदी तक को यहां पुरुष सत्तात्मक मानसिकता को झेलना पडा है | हर युग में पुरुष के वर्चस्व की कीमत नारी ने चुकाई है या उसे चुकाने पर मजबुर होना पडा है | यही कारण रहा कि ढोल,गंवार, शुद्र, पशु नारी , ये सब ताडन के अधिकारी और नारी तेरी यही कहानी आंचल में दूध आंखों में पानी जैसी रचनायें रची गईं आखिरकार  नारी के आदर और सम्मान का के बजाय उस पर हो रहे अत्याचार के लिए कौन दोषी है, उस की दिशा और दशा का इस तरह पतन हुआ क्यों हुआ, यह भी एक बड़ा विषय है कारण यह भी था कि मोगल सत्ताधीशों
                                      
का आंतक इस तरह अपना सिर ऊंचा कर बैठा कि नर को नारी को इस आतंक से बचाने के लिये पर्दा-प्रथा को लाना पडा | पति के मृत्य के बाद सती बनने की प्रथा लाई गई और देखते ही देखते कुरिवाजों की बाढ सी गई जो नारी चूल्हे-चौखट से चौपाल तक जा सकने में शक्तिमान थी वह दहलिज लांघने को भी लाचार हो गई  
              हम यह अच्छी तरह जानते हैं, कि मातृत्व के आंगन में ही हमारे व्यक्तित्व का विकास होता है | माँ  ही बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है | हमे ये कतई नहीं भूलना चाहिये कि सशक्त नारी से ही सशक्त समाज और सशक्त देश का निर्माण हो सकता है और हुआ भी है शायद इसीलिये शर-शैया पर लेटे हुए भीष्म-पितामह ने अपने अंतिम समय में पांडवों को राजनीति के पाठ पढाते हुए नसीहत दी थी कि किसी राजा की कुशलता इस तथ्य की मोहताज होती है कि उस के राज्य में महिलाओं का सम्मान कितना होता है ? यही कारण है कि आज महिला सशक्तिकरण सरकार की उपलब्धियां का सार्थक मापदंड बना हुआ है | वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने इंदिरा गांधी पुरुस्कार देते समय यह कहा था कि राष्ट्र की आर्थिक गतिविधियां में महिलाओं की उचित भागीदारी के बिना सामाजिक प्रगति की अपेक्षा रखना तर्क संगत नहीं होगा | आज हमारे देश में भी महिलाये आगे बढ़-चढ़कर व्यापार कॉरपरेट जगत में अहम भागीदारी कर रही है | लेकिन चंद महिलाओं को ऊंचाई पर देख, हम उनमें से एक बडे प्रतिशत की अशिक्षित महिलाओं को नजर अंदाज नहीं कर सकते जो आज भी कुपोषण की शिकार हैं, घरेलू हिंसा और तानाकसी से तार-तार हो रही हैं, दहेज के लिये जलाई जा रहीं हैं, बेटी को जन्म देने के निर्णय के लिये भी वे पुरुष पर निर्भय हैं |
               सही अर्थों में देखा जाये तो 8 मार्च को  महिला दिवस मनाने का औचित्य ही है, कि महिला सशक्तिकरण हो तथा उन्हें उनका आत्म-सम्मान लौटाना | उसे आत्मनिर्भर बनाना | उस के अस्तित्व की रक्षा करना | बहुत सह लिया महिलाओ ने, अब प्रताड़नाओं को सहने का समय ख़त्म करना होगा, जो प्रताडना आज से नहीं सदियों से चली रही है उसके ख़िलाफ़ आवाज बुलंद करना होगा महाभारत में अपने ही देवर दुशासन के हाथों द्रौपदी का चीर-हरण भरी सभा में कुटुंब के महानुभावों और खुद के ही सशक्त पांच पतियों के सन्मुख हुआ था जब कभी भी हमारे देश में महिला सशक्तिकरण की चर्चायें होती हैं तब आर्थिक और राजनैतिक उत्थान की ही बातें होती हैं | इसी कारण आज हम एक पढी-लिखी आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर महिला को हर तरह से सशक्त और सफल मान लेते हैं पर क्या महिलाओं का सशक्तिकरण आर्थिक रुप से सक्षम हो जाने से हो पायेगा ? कतई नहीं..|  ये सही है कि वे कामकाजी तो बनी हैं पर अपने घर वापस सुरक्षित पहुँच ने की गेरंटी क्या उन्हें मिल पाई है ? महिलाओ का राजनैतिक उत्थान बताने हेतु हमारी सरकारों ने उन्हें मंत्री का स्थान तो दे दिया है तथा ग्रामीण महिलाओं को सरपंच तो बना दिया है पर वे मंत्री/सरपंच महिलायें अपने ही पुरुषवर्ग के हाथों की कठ्पुतलियां ही मात्र नहीं बनी रहें, इस बात का भी विशेष ध्यान रखना होगा  
                                                             
             
जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवं पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक सशक्तिकरण का ढोल पिटना एक खेल मात्र ही बना रहेगा | सामाजिक उत्थान का आधार-स्तंभ है नारी-शिक्षा | शिक्षित व्यक्ति ही अपनी समानता और स्वतंत्रता के साथ-साथ अपने कानूनी अधिकाओं का बेहतर उपयोग कर सकता है | अपने आत्मसम्मान की  रक्षा कर सकता है | अपमानित होने से बच सकता है | शायद यही वजह रही है कि हमारे भारतवर्ष में महिला-शिक्षण का प्रतिशत बहुत कम है,क्योंकि हमारे देश के शासन में बैठे मनु महाराज के वंशज ये नहीं चाहते थे कि महिला शिक्षित हो | वे जानते थे कि अगर नारी को पढने देगें तो वह अपना भला-बूरा समझ पायेगी | उन्हें इस बात की भीती भी थी कि घर को सही ढंग से चलानेवाली नारी कहीं हमे ही चला बैठे…!! जब-जब नारी को मौका मिला है , उस ने  तब-तब अपनी शक्ति का परिचय बखुबी दिया है | सरोजिनी नायडू, मदर टेरेसा, पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी, पूर्व पुलिस कमिश्नर श्रीमती किरन बेदी , आई सी आई सी बेंक की निदेशक चंदा कोचर आदि अनगिनत देश-विदेश की महान महिलाओं ने अपने कार्य को बखूबी तथा कर्मठता से करके नारी शक्ति के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये है |
               यह एक मिथ्या सोच ही है कि महिला सश्क्तिकरण से पुरुषों के अधिकारों का हनन होगा | सशक्तिकरण अधिकारों का बंटवारा नहीं बल्कि परिस्थितियों और मापदंडों के सुधार का पर्यायवाची है | अगर महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा तो पुरुष की स्थिति भी कई गुणा अधिक प्रगति की राह पर अग्रसर होती दिखेगी | नारी को दुर्गा का रुप माना गया है जो शेर सवारी है और हर हाथ में अस्त्र-शस्त्र थामे हुए है | महिषासुर मर्दनी है | वह शिव की शक्ति है | शिव शक्ति बिना अघूरे हैं | नारी भी नर की शक्ति ही है तभी तो उसे अर्धांगिनी माना जाता रहा है..!! अगर ये सकारात्मक सोच को सामने रखेंगे तभी महिला सशक्तिकरण को बढावा मिल पायेगा और तभी महिला दिवस जैसे दिन को मनाने की आवश्यकता समाप्त होगी  
                स्वतंत्रता के पूर्व की बात को लें और सिर्फ उसके बाद के वर्षों पर ध्यान दिया जाये तब ही हम समझ पायेगें कि स्वतंत्रता के : दशकों के बाद भी नारी का सशक्तिकरण क्यों हो पाया ? कानून तो बहुत बनें किन्तु आजादी के बाद हमारे संविधान के निर्माण के समय हिंदू कोड बिल की भी बात उठी थी | इस बिल को सामाजिक विधि-विधान को सामने रख बनाया गया था | दुर्भाग्यवश कुछ स्वार्थों के चलते पारित नहीं हो पाया था | पर उस  के बाद 1974-78 में पंचवर्षीय योजना के तहत महिलाओं की परिस्थिति में सुधार लाने के लिये कानून बनाये गये जो काफी सक्षम भी थे पर सुधार हो नहीं हो पाया | फिर 1990 में राष्ट्रिय महिला आयोग का गठन किया गया | इस के पश्चात् कुछ बात बनी फिर 2009-11 में  सात सूत्रीय कर्यक्रमों के तहत बहुत सी बातें को आगे रखा गया, सुरक्षित मातृत्व, समान पारिश्रमिक इत्यादि कई महिला उत्थान को ध्यान में रख कायदे बनाये गये थे | वर्ष 2010                  
में मिशन पूर्ण शक्तिकी स्थापना भी हो गई, पर नतीजा यह हुआ कि आज २१वीं सदी में भी जब महिला शिक्षा को बढ़ावा मिला तथा उनके सुरक्षा के लिए कई कानून और योजनाए को बनाया गया किन्तु फिर भी उन पर शोषण और बलात्कार जैसे मामलों की बाढ़ सी गई  
                आज भी हमारी महिलाओं को घरेलू हिंसा का सामना करना पड रहा है | आज भी कार्यस्थल पर पद्दोनति के लिये पक्षपात को झेलना पड रहा है आज अपने ही घरों में यौन शोषण का शिकार बनी देखी जा रही है | उसे शिक्षा से वंचित रखा जा रहा है और सब से दु:खद तो ये है कि आज भी निर्भया, कामिनी ,लज्जा कुछ विकृत मानसिकता वाले भेडियों के कुकर्म का शिकार बनती देखी जा रही हैं | चौराहों पर उन  के शील का हनन किया जा रहा है, क्या इसे हम नारी सशक्तिकरण मान लें ? क्या कानून बनाकर भी हम नारी अस्मिता को निलाम होने से रोक पाये ? नहीं क्यों ? क्योंकि मानव बडा समझदार प्राणी है उस ने अपनी कथनी और करनी को अलग रखना सिख लिया है ये भी उतना ही सच है कि जब-जब अति ने सिर उठया है, उस का तब-तब नाश ही हुआ है | जब कभी धर्म पर अधर्म हावी होने लगता है तो क्रांति का जन्म हुआ है शायद इसीलिये दिल्ली के गैंगरेप की घटना ने सोये हुए देशवाशियों को जगा दिया | प्रशासन में बैठ जनता के हित के ठेकेदारों को चुनौती दे डाली | लेकिन रावण तब भी था और अब भी है | सोचने वाली बात यह है कि अपना सम्मान अपने ही हाथों में होता है, अतः महिलाओ को अपने सम्मान के लिए खुद को एक भारतीय संस्कारों से ओत-प्रोत महिला का गर्व रूपी अमली जामा ओढ़ना होगा तथा अपनी अभिव्यक्ति को जताने का अधिकार लेना होगा तथा उस पर कोई भी आंच आये तब वह माँ दुर्गा और रानी लक्ष्मी बाई का रौद्र रूप लेकर अपनी अधिकारों को रक्षा खुदबखुद कर सके

                मेरा मानना यह भी है कि हमें महिलाओ के प्रत्येक क्षेत्र में उत्थान के लिए कानूनों की बैसाखियों का सहारा तो लेना है पर साथ-साथ अपने आप को शिक्षित कर, खुद के अस्तित्व को ऊपर उठाना है | अपने आत्मसम्मान को बरकरार रखना है और आत्म निर्भय हो आत्म रक्षा के लिये तैयार होना है मानसिक तौर पर भले ही हम सशक्त हैं, शारिरीक तौर पर भी हमें सशक्त बनना होगा तभी सही अर्थों में हम महिलाओं के सशक्तिकरण को सही दिशा दे पायेंगे और तभी महिला दिवस को भी आदर और सम्मान के साथ मनाने का औचित्य पूर्ण हो सकेगा हमारे देश के २०१४ के आम चुनावों में नई चुनी गई सरकार ने अपने घोषणा पत्र में महिलाओं की पूर्ण सुरक्षा और उन पर हो रहे अत्याचारों व् शोषणों को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उढ़ाने का आश्वासन दिया है तथा अपने मंत्रिमंडल में भी उन्हें अधिक संख्या में जिम्मेदारियाँ देकर महिला शक्ति के प्रति विश्वास किया है इससे यह आशा जगी और बढ़ी है, कि आने वाले समय में हमारे  देश में महिलाओ को उनकी कार्य क्षमता और उनके अधिकारों के लिए उचित पूर्ण सम्मान और इंसाफ मिल सकेगा  

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