Wednesday, December 12, 2007

खुश रहने के दस फायदे

(१) ख़ुशी देना एक सर्वोत्तम दान है। ख़ुशी देने के लिए स्वयं से पहले प्यार करे ,तथा सदा प्रसन्नचित्त रहे।
(२) सदा हर्षित एवं संतुष्ट रहने से आप आकर्षण कि मूर्ति बनते है। हर्षित मुख सदैव प्रसन्न होकर दूसरो
के चहरे पर मुस्कान ला सकता है।
(३) होंठो पर मुस्कान प्रत्येक कठिन कार्य को सरल कर सकती है। खुशमिजाज व्यक्ति के अंदर कभी
आलस्य नहीं आता ,जो एक आदमी का बड़ा विकार होता है।
(४) ख़ुशी और संतोष सदा साथ-साथ रहते है। ये दोनो ही गुण से लोग आप कि ओर स्वतः ही आकर्षित
हो जायेंगे। आपकी ख़ुशी आपका सच्चा सौंदर्य होता है, नाखुश या चिढ-चिढ करने वाला व्यक्ति सही
मायने में कुरूप होता है।
(५) जीवन एक नाटक है, यदि इसके कथानक को समझ लें तभी हम प्रसन्न या खुश रहेंगे। खुश रहने
की इस कला या चाबी से कैसी भी एवं सभी परिस्थितियों में आप अपना संतुलन बनाए रख सकेंगे।
(६) आपकी एक मुस्कान ,मरुस्थल में भी कभी-कभी पानी की एक बूंद से किसी को लाभ दे सकती है।
अतः यदि हम पल-पल खुश रहते है ,तो आने वाले अनेक पलों में भी खुश होने की संभावना बढ़ती है।
(७) सुखों-दुखों से परिपूर्ण इस जीवन में सच्ची सम्पत्ति धन या पैसा नहीं बल्कि संतोष है ,जो ख़ुशी से
प्राप्त हो सकता है। विपरीत परिस्थितियों में हंसी-ख़ुशी से सामना व्यक्ति को महावीर बनता है।
(८) ख़ुशी आदमी को ईमानदार व साफ दिल का बनाकर, स्वतः को मुक्त तथा तनावरहित होने का
अनुभव कराती है। दुखों को भुलाने में इससे ज्यादा लाभ होता है ।
(९) अगर हम हर काम को ख़ुशी व जोश से करें ,तब कोई भी काम मुश्किल नही लगेगा। क्रोधित होने
से आप में निहित उर्जा व शक्ति का नाश होता है ,अतः इसे बचाने के लिए खुश व प्रसन्नचित्त रहें।
(१०) खुशमिजाज व्यक्तियों में दीर्घायु होने का प्रतिशत ज्यादा हो जाता है। चिंताग्रस्त या सदैव नाखुश
व्यक्ति में कई प्रकार के विकारों का जन्म हो जाता है,जिससे वह मृत्यु से पहले ही कई बार मरता है।

Monday, December 10, 2007

मौसम और पर्यावरण की समस्या व समाधान

प्रकृति के रूप अनेक , इस कहावत का लाक्षणिक अर्थ है , कि जहाँ प्रकृति ने, सम्पूर्ण ब्रम्हांड में मात्र पृथ्वी
पर , अपनी अनुपम सुन्दरता कि मनोहारी छटा बिखेर कर मानव प्रजाति को जीवंत रखने वाली गैस ऑक्सिजन का संतुलन बनाया, पीने योग्य जल तथा मानव निर्मित प्रदुसनो से निजात दिलाने वाले पेड़-पौधो ,नदियों वपहाडों आदि से सुख देने तथा स्वस्थ रखने में संजीवनी बूटी का जीवन दायक कार्य किया है ,वहीं प्रकृति की विभीषिका व विकरालता के समक्ष मानव जीवन टेककर निर्मूल साबित हो जाता है।
प्रकृति के अपने प्रबंध है,जिन्हें ठीक से समझने की आवश्यकता है,स्पष्ट है कि जब हम उसके प्रबंध या
उसकी व्यवस्था का उल्लंघन करते है,तब पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाये जन्म लेकर प्रकृति कि विकरालता
प्रदर्शित करती है,जिससे जन-धन की हानि होती है । यह उल्लंघन मनुष्य की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण दखलंदाजी
है,जिसके कारन वर्तमान पीढ़ी तो अभिशापित हो रही है,किन्तु यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाली
पीढ़ी पर इसकी कलि छाया अवश्य पड़ेगी ।
पर्यावरण प्रदुसनो ने आज मानव सभ्यता व जातियों कि सुरक्षा को ख़तरे में पंहुचा दिया है। स्वयं
मानव ने अपने स्वार्थो के खातिर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर उसके साथ अपने सामंजस्य को बिगड़ने
में अहम भूमिका निभाई है। यदि प्रकृति से उतना ही ग्रहण करे जितना आवश्यक हो व जिससे उसे नुकसान
न हो । अतः वृक्षों को न कांटे, जल का दुरपयोग न करें तथा धरती कि रक्षा धर्म हो। उतना ही लें जितना
पूर्ति कर सकें । बढ़ती आबादी ,पेट्रोल आदि से चालित वाहनों ,उद्योगों ,कल-कारखानों ,परमाणु संयंत्रों
आदि से उत्पन्न पर्यावरण प्रदुसनो के कारन पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि से ,अनेक जानलेवा रोगों के
जन्म से,पीने योग्य पानी की कमी आदि से वर्तमान समय में सभी देश प्रभावित हो रहें है। जिससे प्राकृतिक आप्दाओ में वृद्धि होकर अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओ को बढावा मिल रहा है। जो आज सबसे
महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।
किन्तु प्रकृति अधिक दयालु भी है ,जो किसी आपदा से पहले हमे सतर्क होने का एक अवसर प्रदान
अवश्य करती है । जरुरत है इस को पहचानने समय रहते जन चेतना जाग्रत करने तथा वैज्ञानिक
तकनीको का सही उपयोग करके सुरक्षित एवं सावधान रहने की । तभी हम प्राकृतिक आपदाओ से उत्पन्न
जन-धन के महाविनाश को कुछ हद तक रोकने में सफल हो सकेंगे। इस विश्व व्यापी समस्या के समाधान
हेतु विश्व-स्तर पर जरुरी कानूनों को बनाया जाना चाहिऐ व इस पर सख्ती से पालन करने पर जोर दिया
जाना चाहिऐ। स्वार्थो कि पूर्ति हेतु किये गए पर्यावरण पर अत्याचार के साथ प्रकृति के नियमो कि अनदेखी
करने का यह कार्य दुर्भाग्य पूर्ण तथा अत्यंत घिनोअना कर्म है।
इकिस्वी सदी में मानव ने अपनी कुशाग्र बौधिक क्षमता तथा वैज्ञानिक खोजो के बल पर दूसरे ग्रहों पर
कदम तो रख दिए है, किन्तु वह आज भी प्रकृति की अद्रश्य व अलौकिक शक्ति के सामने विजय प्राप्त करने
में असफल ही रहा है। प्रकृति व पर्यावरण कि सुरक्षा पर उठे खतरों को दूर करने आज कि महती एवं अहम
जिम्मेदारी है। प्राथमिकता में " विनाश रहित विकास " का रास्ता चुनना ही सबसे सही राह होगी ,तब हम
कुछ हद तक समस्या कि जड़ तक पहुंच सकते है। अतः आज यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण निष्ठावान होकर,सजगता ,संकल्प व ईमानदारी का परिचय दें ,तब संभवतया प्राकृतिक बाधाओं से मानव जाती की संपूर्ण सुरक्षा कर देश के चहुंमुखी विकास में अपना अमूल्य एवं सराहनीय योगदान दे सकते है। इसप्रकार के मानव समाज की सुरक्षा के बहुमूल्य योगदान का स्मरण सदैव किया जाता रहेगा।

Saturday, May 5, 2007

भ्रष्टाचार

जब आचरण भ्रष्ट या दूषित हो जाय तब भ्रष्टाचार पनपता है । आचरण मात्र मानव करता है ,जो अच्छा करे वो sadachar
एवं जो गलत करे वो दुराचार । दुराचार ही भ्रष्टाचार का ही दुसरा नाम है । मानव ने ही इसे अपने छोटे-छोटे स्वार्थो कि पूर्ती कि खातिर एवं आदर्शो को भूल कर जन्म देकर आगे बढाया है और आज इसी ने हम सबके नैतिक मुल्यो को दांव पर लगा दिया है। आज हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है,चाहे वह कोई भी शेत्र हो ,शिक्षा ,संगीत ,राजनीति ,सरकारी-ग़ैर सरकारी कार्यालय ,हर तरफ तन मन धन से तन मन धन का भ्रष्टाचार हो रहा है। आज मानव अपने नैतिक मुल्यो को बेच रहा है एवं मानवता को भूल गया है । इस का परिणाम स्वतः मानव को ही झेलना है ,इससे आने वाली पीढी भी अभिशापित होगी । आज सबसे बढ़ी आवश्यकता है ,मानव निर्मित इस भ्रष्टाचार जैसे दानव को मानव स्वतः अपने स्वार्थो को भूलकर एवं मानवता तथा नैतिकता को जिंदा रखने हेतु अपने आत्मा से बाहर निकाल फ़ेंक दे । इसे बढावा ना दे क्योंकि भ्रष्टाचार करना एवं उसे बढावा
देना भी अपराध होता है। भ्रष्टाचार रहित देश सदैव प्रगति के पथ पर आगे रहेगा ।

Tuesday, May 1, 2007

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास का सही अर्थ खुद पर भरोसा एवं अपनी आत्मा की निहित शक्ति पर विश्वास है ।
आपके चरित्र तथा सकारात्मक सोच मे अनुशासन एवं कर्तव्य जैसे गुण आपके आत्मविश्वास
को बढ़ाते है ।
शुरुआत मे अपनी सोच बदले तथा अच्छाइयों को खोजे । हालत के अच्छे व बुरे पहलू पर विचार कर
अच्छे पहलू पर गौर करे एवं बुरे पहलू से सचेत होकर कार्य करे ।
संकोच,शर्म जैसे नकारात्मक विचारो को महत्व ना देते हुए विचारो मे खुलापन लाए ।
सकारात्मक सोच बढने से आत्मसम्मान बढ़ता है । इसके के लिए अच्छे गुरू या मार्गदर्शक
से अनुभव प्राप्त करे । ओप्चारिक या उनोप्चारिक शिक्षा के ज्ञान को समझदारी से अमल
मे लाने से आत्मविश्वास बढ़ता है ।
इससे आपकी पहचान बनती है ,जोश पैदा होता है ,जीवन आनंदित और लोग आपसे से प्रेरित
होंगे ।
चरित्र ,कार्य के प्रति लगन ,साहस एवं पक्के इरादे जैसी खुबिया आपके आत्मविश्वास को
प्रदर्शित करती है।
अच्छे स्वाभिमान का निर्माण करे । परिवार कि सम्पूर्ण देखभाल से सम्मानित हो।
असफ़लता एवं अनजानी चिजो से ना डरे ,फैसलों के लेने व अस्वीकार किये जाने के भय
से आशंकित ना हो।
आशावादी साथ अपनी प्रतिभा का उपयोग करे । सपनो को साकार करने के प्रति कटिबद्ध रहकर
नकारात्मकता को दूर रखे ,जो आपके अन्दर के विश्वास को निश्चित ही प्रदर्शित करेगा।

Sunday, April 29, 2007

प्रेम

प्रेम का सही मायने मे अर्थ सबके प्रति लगाव जो निस्वार्थ भाव से किया गया हो।
परमात्मा से प्रेम करना समस्त मानवता से प्रेम करने के जैसा है ।
सबके प्रति भाई- भाई की द्रष्टि रखने से आप सदा प्रेम्युक्त रह सकेंगे ।
यह आशा मत रखिये की दुसरे आप से प्यार करे एवं आप पर ध्यान दे । इसके बजाय
आप दूसरो से प्यार करे एवं उनका ध्यान रखे ।
जब आप दूसरो से प्यार करना सीख लेंगे तब दुसरे आप से नफरत करना छोड देंगे।
शत्रु से छुटकारा पाने का सही उपाय है कि उसे अपना मित्र बना ले ।
हम जिससे प्रेम करते है हमारा स्वरुप एवं व्यक्तित्व वैसा ही बन जाता है ।
सबके प्रति समान स्नेह रखने से आप धैर्य का जीवन जी सकते है ।
जो प्रेम किसी को नुक़सान पहुचाये वह प्रेम है ही नही ।
जितना प्रेम देंगे उतना प्रेम पाएंगे , जितना प्रेम अधिक होगा उसे देना उतना ही सहज हो जाएगा ।