Monday, December 10, 2007

मौसम और पर्यावरण की समस्या व समाधान

प्रकृति के रूप अनेक , इस कहावत का लाक्षणिक अर्थ है , कि जहाँ प्रकृति ने, सम्पूर्ण ब्रम्हांड में मात्र पृथ्वी
पर , अपनी अनुपम सुन्दरता कि मनोहारी छटा बिखेर कर मानव प्रजाति को जीवंत रखने वाली गैस ऑक्सिजन का संतुलन बनाया, पीने योग्य जल तथा मानव निर्मित प्रदुसनो से निजात दिलाने वाले पेड़-पौधो ,नदियों वपहाडों आदि से सुख देने तथा स्वस्थ रखने में संजीवनी बूटी का जीवन दायक कार्य किया है ,वहीं प्रकृति की विभीषिका व विकरालता के समक्ष मानव जीवन टेककर निर्मूल साबित हो जाता है।
प्रकृति के अपने प्रबंध है,जिन्हें ठीक से समझने की आवश्यकता है,स्पष्ट है कि जब हम उसके प्रबंध या
उसकी व्यवस्था का उल्लंघन करते है,तब पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाये जन्म लेकर प्रकृति कि विकरालता
प्रदर्शित करती है,जिससे जन-धन की हानि होती है । यह उल्लंघन मनुष्य की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण दखलंदाजी
है,जिसके कारन वर्तमान पीढ़ी तो अभिशापित हो रही है,किन्तु यह सिलसिला जारी रहा तो आने वाली
पीढ़ी पर इसकी कलि छाया अवश्य पड़ेगी ।
पर्यावरण प्रदुसनो ने आज मानव सभ्यता व जातियों कि सुरक्षा को ख़तरे में पंहुचा दिया है। स्वयं
मानव ने अपने स्वार्थो के खातिर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर उसके साथ अपने सामंजस्य को बिगड़ने
में अहम भूमिका निभाई है। यदि प्रकृति से उतना ही ग्रहण करे जितना आवश्यक हो व जिससे उसे नुकसान
न हो । अतः वृक्षों को न कांटे, जल का दुरपयोग न करें तथा धरती कि रक्षा धर्म हो। उतना ही लें जितना
पूर्ति कर सकें । बढ़ती आबादी ,पेट्रोल आदि से चालित वाहनों ,उद्योगों ,कल-कारखानों ,परमाणु संयंत्रों
आदि से उत्पन्न पर्यावरण प्रदुसनो के कारन पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि से ,अनेक जानलेवा रोगों के
जन्म से,पीने योग्य पानी की कमी आदि से वर्तमान समय में सभी देश प्रभावित हो रहें है। जिससे प्राकृतिक आप्दाओ में वृद्धि होकर अनेक प्रकार की सामाजिक समस्याओ को बढावा मिल रहा है। जो आज सबसे
महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।
किन्तु प्रकृति अधिक दयालु भी है ,जो किसी आपदा से पहले हमे सतर्क होने का एक अवसर प्रदान
अवश्य करती है । जरुरत है इस को पहचानने समय रहते जन चेतना जाग्रत करने तथा वैज्ञानिक
तकनीको का सही उपयोग करके सुरक्षित एवं सावधान रहने की । तभी हम प्राकृतिक आपदाओ से उत्पन्न
जन-धन के महाविनाश को कुछ हद तक रोकने में सफल हो सकेंगे। इस विश्व व्यापी समस्या के समाधान
हेतु विश्व-स्तर पर जरुरी कानूनों को बनाया जाना चाहिऐ व इस पर सख्ती से पालन करने पर जोर दिया
जाना चाहिऐ। स्वार्थो कि पूर्ति हेतु किये गए पर्यावरण पर अत्याचार के साथ प्रकृति के नियमो कि अनदेखी
करने का यह कार्य दुर्भाग्य पूर्ण तथा अत्यंत घिनोअना कर्म है।
इकिस्वी सदी में मानव ने अपनी कुशाग्र बौधिक क्षमता तथा वैज्ञानिक खोजो के बल पर दूसरे ग्रहों पर
कदम तो रख दिए है, किन्तु वह आज भी प्रकृति की अद्रश्य व अलौकिक शक्ति के सामने विजय प्राप्त करने
में असफल ही रहा है। प्रकृति व पर्यावरण कि सुरक्षा पर उठे खतरों को दूर करने आज कि महती एवं अहम
जिम्मेदारी है। प्राथमिकता में " विनाश रहित विकास " का रास्ता चुनना ही सबसे सही राह होगी ,तब हम
कुछ हद तक समस्या कि जड़ तक पहुंच सकते है। अतः आज यदि हम अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण निष्ठावान होकर,सजगता ,संकल्प व ईमानदारी का परिचय दें ,तब संभवतया प्राकृतिक बाधाओं से मानव जाती की संपूर्ण सुरक्षा कर देश के चहुंमुखी विकास में अपना अमूल्य एवं सराहनीय योगदान दे सकते है। इसप्रकार के मानव समाज की सुरक्षा के बहुमूल्य योगदान का स्मरण सदैव किया जाता रहेगा।

No comments: