Saturday, May 5, 2007

भ्रष्टाचार

जब आचरण भ्रष्ट या दूषित हो जाय तब भ्रष्टाचार पनपता है । आचरण मात्र मानव करता है ,जो अच्छा करे वो sadachar
एवं जो गलत करे वो दुराचार । दुराचार ही भ्रष्टाचार का ही दुसरा नाम है । मानव ने ही इसे अपने छोटे-छोटे स्वार्थो कि पूर्ती कि खातिर एवं आदर्शो को भूल कर जन्म देकर आगे बढाया है और आज इसी ने हम सबके नैतिक मुल्यो को दांव पर लगा दिया है। आज हर तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है,चाहे वह कोई भी शेत्र हो ,शिक्षा ,संगीत ,राजनीति ,सरकारी-ग़ैर सरकारी कार्यालय ,हर तरफ तन मन धन से तन मन धन का भ्रष्टाचार हो रहा है। आज मानव अपने नैतिक मुल्यो को बेच रहा है एवं मानवता को भूल गया है । इस का परिणाम स्वतः मानव को ही झेलना है ,इससे आने वाली पीढी भी अभिशापित होगी । आज सबसे बढ़ी आवश्यकता है ,मानव निर्मित इस भ्रष्टाचार जैसे दानव को मानव स्वतः अपने स्वार्थो को भूलकर एवं मानवता तथा नैतिकता को जिंदा रखने हेतु अपने आत्मा से बाहर निकाल फ़ेंक दे । इसे बढावा ना दे क्योंकि भ्रष्टाचार करना एवं उसे बढावा
देना भी अपराध होता है। भ्रष्टाचार रहित देश सदैव प्रगति के पथ पर आगे रहेगा ।

1 comment:

Nom de plume said...

Read your blog. Very nicely written and interesting. Commenting from IIT , where we all have come for my convocation, which is on 1st june.
Keep writing and all the best.

vaibhav