Sunday, April 29, 2007

प्रेम

प्रेम का सही मायने मे अर्थ सबके प्रति लगाव जो निस्वार्थ भाव से किया गया हो।
परमात्मा से प्रेम करना समस्त मानवता से प्रेम करने के जैसा है ।
सबके प्रति भाई- भाई की द्रष्टि रखने से आप सदा प्रेम्युक्त रह सकेंगे ।
यह आशा मत रखिये की दुसरे आप से प्यार करे एवं आप पर ध्यान दे । इसके बजाय
आप दूसरो से प्यार करे एवं उनका ध्यान रखे ।
जब आप दूसरो से प्यार करना सीख लेंगे तब दुसरे आप से नफरत करना छोड देंगे।
शत्रु से छुटकारा पाने का सही उपाय है कि उसे अपना मित्र बना ले ।
हम जिससे प्रेम करते है हमारा स्वरुप एवं व्यक्तित्व वैसा ही बन जाता है ।
सबके प्रति समान स्नेह रखने से आप धैर्य का जीवन जी सकते है ।
जो प्रेम किसी को नुक़सान पहुचाये वह प्रेम है ही नही ।
जितना प्रेम देंगे उतना प्रेम पाएंगे , जितना प्रेम अधिक होगा उसे देना उतना ही सहज हो जाएगा ।